Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ५५०
लेण्या मार्गणा/६१३ बिहारवत्स्वस्थान, वेदनासमूदधात, कायममृदयात वक्रियिक समुदघात और मारणान्तिक पदों से परिणत उन्हीं पालेश्यावाले देवों के द्वारा कुछ कम आठ वटे चौदह (2) भाग स्पृष्ट है, क्योंकि पद्मलेश्या वाले देवों के एकेन्द्रिय जीवों में मारणान्तिक समुद्घात का अभाव है।' उपपाद की अपेक्षा लोक का असंख्यातवाँ भाग स्पृष्ट है अथवा अतीत काल की अपेक्षा कुछ कम पांच बटे चौदह (१) भाग स्पृष्ट है ।।२०७-२०८।। क्योंकि मेरुमूल से पाँच राजमात्र मार्ग जाकर सहस्रार कल्प का अवस्थान है।
शुक्ललेण्या वाले जीवों ने स्वस्थान और उपपाद पदों से लोक का असंख्यातवाँ भाग स्पर्श किया है अथवा अतीतकाल की अपेक्षा कुछ कम छह बटे चौदह भागों का स्पर्श किया है ।।२०६-२११।।३
खुलासा इस प्रकार है-स्वस्थान पद से तीन लोकों के असंख्यातवें भाग, तिर्यग्लोक के संख्यान भाग और अढाई द्वीप से असंख्यातगुणे क्षेत्र का स्पर्श किया है। विहारवत् स्वस्थान और उपपाद पदों से छह बटे चौदह () भागों का स्पर्श किया है, क्योंकि तिर्यग्लोक से पारण-अच्युत कल्पों में उत्पन्न होने वाले और छह राजू के नीलर विहार करने वाले उक्त जीवों के इतना मान स्पर्शन पाया जाता है।
समुद्घात की अपेक्षा शुक्ल लेश्या बालों का स्पर्श एवरि समुग्यादम्मि य संखातीदा हवंति भागा वा । सन्चो वा खलु लोगो फासो होदित्ति रिगद्दिट्ठो ॥५५०।।
माथार्थ –किन्तु (शुक्ल लेश्या वाले जीवों ने) समुद्घात को अपेक्षा लोक का असंख्यातवां भाग अथवा सर्व लोक स्पर्श किया है ।। ५५७ ।।
विशेषार्थ-- इतनी विशेषता है कि शुक्ल लेण्या बाले जीवों के द्वारा समुद्घात पदों से लोक का असंध्यातवा भाग स्पष्ट है अथवा अतीत काल की अपेक्षा कर कम छह बटे चौदह : है ।।२१३-२१४।। क्योंकि पारग-अच्युत कल्पवासी देवों में मारणान्तिक समुद्घात को करने वाले तिर्यंच और मनुष्य पाये जाते हैं। वेदना, कषाय और वैक्रियिक समुद्घातों की अपेक्षा स्पर्शन का निरूपण विहारवत्स्वस्थान के समान है। अथवा केबलीसमद्घात की अपेक्षा असंख्यात बहभाग अथवा सर्व लोक स्पृष्ट है ।।२१५-२१६॥ दण्डसमुद्घातगत जीवों द्वारा चारों लोकों का असंख्यातवाँ भाग और अढ़ाई द्वीप से असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है। इसी प्रकार कपाट समुद्घातगत जीवों द्वारा भी स्पृष्ट है। विशेष इतना है कि तिर्यग्लोक का संख्यातवाँ भाग अथवा उससे संख्यात गुणा क्षेत्र स्पृष्ट है।
शङ्का-दण्ड समुद्घात को प्राप्त हुए केवलियों का उक्त क्षेत्र से सम्भव है ? समाधान---उत्कृष्ट अवगाहना से युक्त केवलियों का उत्सेध एक सौ पाठ प्रमाणांगल होता है
१. धवल पु. ७ पृ. ४४१। ५. धवल पु. ७ पृ. ४४३ ।
२. धवल पु. ७ पृ. ४४२ । ३. धवल पु.७ पृ. ४४२ ४. धवल पु, ७ पृ. ४४३ । ६. धवल पु. ७ पृ. ४४३-४४४ । ७. धवल पु. ७ पृ. ४४४ ।