Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ५४६-५४७
लेण्यामागंगा/६११
और तिर्यग्लोक से असंख्यात गुणे क्षेत्र का स्पर्श किया है, क्योंकि बिक्रिया करने वाले वायुकायिक जीवों के पाँच बटे चौदह भाग प्रमाण स्पर्णन पाया जाता है। तंजस व प्राहारक व केवली समुद्घात अशुभ लेण्या बालों के नहीं होते।'
अकलंकदेव ने भी कहा है कि वृष्ण, नील ब कापोत लेश्यावानों ने स्वस्थान, समुद्घात और उपपाद पद से सर्वलोक का स्पर्श किया है ।
पीत लेश्या के स्पर्शन का कथन तेउस्स य सहारणे लोगस्स असंखभागमेत्तं तु । अडचोदसभागा वा देसूरणा होति गियमेण ॥५४६॥ एवं तु समुग्धावे राव चोद्दसभागयं च किचूरणं । उववादे पढमपदं दिवड्ढचोद्दस य किंचूरणं ।।५४७॥
गाथार्थ-पीतलेश्या का स्वस्थानस्वस्थाको अपेक्षा लोक का संख्यातवा भाग स्पर्श है और विहारवत्स्वस्थान की अपेक्षा कुछ कम पाठ बटा- चौदह भाग (2) स्पर्श है ।।५४६।। उसी प्रकार समुद्घात में कुछ कम नव बटा चौदह (4) भाग स्पर्श किया है और उपपाद पद में कुछ कम डेढ़ बटा चौदह भाग स्पर्श किया है ।।५४६।।
विशेषार्थ--तेजोलेश्यावाले जीवों द्वारा स्वस्थान पदों से लोक का असंख्यातवाँ भाग स्पृष्ट है ।।१६५।। यहाँ क्षेत्र प्ररूपणा करनी चाहिए, क्योंकि वर्तमान काल की विवक्षा है। अतीत काल की अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट किया है ।।१६६।। स्वस्थान की अपेक्षा तीन लोकों का असंख्यातवाँ भाग, तिर्यग्लोक का संख्यातवाँ भाग और अढ़ाई द्वीप से असंख्यात गुणा क्षेत्र स्पृष्ट है । विहारबत्स्वस्थान अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट है। क्योंकि तीसरे नरक तक विहार करते हुए तेजो लेश्या वाले देवों का नीचे दो राजू और ऊपर सोलहवें स्वर्ग तक छह राज् इस प्रकार प्राट राजु क्षेत्र का पर्श पाया जाता है।
शङ्का--ऊपर सोलहवें स्वर्ग में तो गीत लेश्या नहीं है, मात्र शुक्ल लेण्या है । फिर ऊपर छह राज स्पर्श कैसे सम्भव है ?
समाधान- सोलहवें स्वर्ग के देवों की नियोगिनी देवियाँ सौधर्म युगल में उत्पन्न होती हैं । ५ और उनके पीत लेश्या ही होती है। सोलहवें स्वर्ग तक देव अपनी नियोगिनी देत्रियों को अपने विमानों में ले जाते हैं।
बेदना, कषाय और वैक्रियिक पदों से परिगत तेजो लेश्या वाले जीवों द्वारा पाठ टे चौदह भाग () स्पृष्ट है । क्योंकि विहार करते हुए देवों के ये तीनों पद सर्वत्र पाये जाते हैं।
- - - १. धवल पु. 3 सुत्र १६३ पृ. ४३८, भूत्र १७७ पृ. ४३४, सूत्र १३६ पृ. ४२३ । २. रा. वा. ४/२२/१० । ३. घयल पु. ७ पृ. ४३८ । ४. धवल पु. ५ पृ ३८६ । ५. "तत्स्त्रीणां सौधर्मकल्पोपपत्तेः ।" [ध. पु. १ पृ. ३३८] ।