Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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६०० / गो. सा. जीव काण्ड
लेश्या मार्गा की शेष गाथाओं के विशेषार्थ में भाव लेश्या का कथन हो चुका है अतः पुनरुक्त दोष के कारण यहाँ पर कथन नहीं किया गया है।
गाथा ५३७-५३१
तीन अशुभ श्याओं में जीवों का प्रमाण
किण्हादिरासिमावलि - श्रसंख भागेर भजिय पविभत्ते ।
होकमा कालं वा प्रस्सिय दत्वा दु भजिदम्बा ।। ५३७ ।। खेत्तादो सुहतिया प्रणतलोगा कमेण परिहोगा । कालादोतीदादो प्रणतगुणदा केवलरणारा तिमभागा भावादु
कमा
हीरा ||५३८ || किन्हतियजीवा ।।५३६ पूर्वाद्ध |
गाथार्थ कृष्ण आदि अर्थात् कृष्ण नील कापोल लेश्या वालों की जितनी राशि है उसको श्रावली के असंख्यातवें भाग से भाग देकर पुनः भाग देना चाहिए । अथवा काल के प्राश्रय से भाग देकर कृष्ण नील कापोत का पृथक्-पृथक् द्रव्य प्राप्त कर लेना चाहिए, जो हीन क्रम लिये हुए है ||३७|| क्षेत्र प्रमाण की अपेक्षा तीन अशुभ लेश्या वाले जीव अनन्त लोक प्रमाण हैं किन्तु उत्तरोत्तर क्रम से हीन-हीन हैं। काल की अपेक्षा तीन अशुभ लेश्या वाले जीव प्रतीत काल से अनन्तगुणे हैं जो उत्तरोत्तर हीन क्रम से हैं ।। ४३८|| कृष्ण ग्रादि तीन लेश्या वाले जीव भाव की अपेक्षा केवलज्ञान के अनन्तवें भाग हैं ||५३६ पूर्वार्द्ध ॥
विशेषार्थ- सर्व जीवराशि के अनन्तखण्ड करने पर बहुभाग प्रमाण तीन अशुभ लेश्या वाले जीव हैं अथवा संसारी जीवों के प्रमाण में से तीन शुभ लेश्या वालों की संख्या, जो असंख्यात है, घटा देने पर किंचित् ऊन संसारी जीवराशि प्रमाण अथवा कुछ अधिक एकेन्द्रिय जीवराशिप्रमाण तीन अशुभ लेश्या बालों की जीवराशि है। इस राशि को ग्रावली के असंख्यातवें भाग से भाग देकर एक भाग को पृथक् रखकर शेष बहुभाग के तीन समान खण्ड करके, शेष एक भाग, जो पृथक् रखा गया था, उसे आवली के असंख्यातवें भाग से भाजित करके, बहुभाग को उन तीन समान खण्डों में से एक-एक खण्ड में मिलाने पर कृष्णलेश्या वालों का प्रमाण प्राप्त होता है। पृथक्कू रखे हुए एक भाग के शेष भाग में पुनः प्रावली के प्रसंख्यातवें भाग देने से लब्ध बहुभाग को दूसरे समान खण्ड में मिलाने पर नीललेश्या वाले जीवों का प्रमाण प्राप्त होता है । शेषभाग को तीसरे समान खण्ड में मिलाने पर कापोत लेश्या वाले जीवों का प्रमाण प्राप्त होता है । कापोतलेश्या वाली जीवराशि, नीललेण्याजीवराशि से होन है। नीललेश्या जीवराणि कृष्णलेश्या जीवराशि से हीन है। इस प्रकार ये जीवराशियाँ हीन क्रम लिये हुए हैं ।
कृष्ण नील कापोत इन तीन प्रशुभ लेश्याओं का सामूहिक काल, कर्मभूमिया जीवों में, अन्तर्मुहूर्त मात्र है। उस अन्तर्मुहूर्त काल में प्रावली के प्रसंख्यातवें भाग का भाग देकर एक भाग को पृथक् रखकर बहुभाग के तीन समान खण्ड करने चाहिए | पृथक् रखे हुए एक भाग को आवली के असंख्यातवें भाग से भाजित कर बह भाग को तीन समान खण्डों में से एक खण्ड में मिलाने पर कृष्ण लेश्या के काल की शलाका प्राप्त होती है। उस पृथक् रखे हुए एक भाग के अवशिष्ट भाग को पुनः ग्रावली के असंख्यातवें भाग से भाजित करके बहुभाग को दूसरे समखण्ड में मिलाने पर नील