Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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५८६/गो. सा. जीवकाण्ड
गाथा ५०७-५०६
परिमाण उत्कृष्ट संख्यात राशि है । अनन्तभाग वृद्धि और अनन्तगुणवृद्धि में भागाहार और गुणाकार समस्त जीवराशि प्रमाण है । असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यात गुणवृद्धि में भागाहार व गुणाकार असंख्यात लोकप्रमाग है। संख्यातभागवृद्धि और संख्यातगुणवृद्धि इनका भागाहार व गुणाकार उत्कृष्ट संख्यात अवस्थित है। संदृष्टि करने के लिए इन छह की ये छह संज्ञा हैं—अनन्त भागवृद्धि की उर्वङ्ग (३), असंख्यातभागवृद्धि की चतुरङ्क (४), प्रख्यात भाग वृद्धि की पञ्चाङ्क (५), संख्यातगुणवृद्धि की षडङ्क (६), असंख्यातमुशवृद्धि को सप्ताङ्क (७), अनन्त गुणवृद्धि की अष्टाङ्क (८) संज्ञा है। सूच्यङ्गुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण अनन्तभागवद्धियों के होने पर एक बार असंख्यात भागवृद्धि होती है । पुनः सूच्यङ्गुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण बार अनन्त भागवृद्धियों के होने पर एक बार असंख्यातवेंभागवृद्धि होती है। इस क्रम से असंख्यातभागवृद्धि भी सुच्यङ्गुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण हो जाय तब पूर्वोक्त प्रमाण अनन्तभागवृद्धि हो जाने पर संख्यात भाग वृद्धि होती है । इसी क्रम से अनन्तगुणवृद्धि तक ले जाना चाहिए।'
दृष्टान्त द्वारा छहों लेण्यानों के कर्म का कथन पहिया जे छप्पुरिसा परिभट्टाररणमझदेसम्हि । फलभरियरुवख मेगं पेविखत्ता ते विचितंति ॥१०॥ रिणम्मूलखंधसाहक्साहं छित्त चिरिणत्त पडिवाइं ।
खाउँ फलाई इदि जे मरणेग बयणं हवे कम्मं ॥५०॥ गाथार्थ -- छह पथिक वन के मध्य में मार्ग से भ्रष्ट होकर फलों से भरे हुए वृक्ष को देखकर विचार करते हैं और कहते हैं-जड़मूल से वृक्ष को काटो, स्कन्ध से काटो, शाखाओं से काटो, उपशाखाओं से काटो, फलों को तोड़ कर खाओ, गिरे हुए फलों को खामो, इस प्रकार के विचार ब वचन लेश्या कर्म को प्रकाट करते हैं ।।५०७-५०८।।
विशेषार्थ फलों से लदे हुए वृक्ष को देखकर कृष्णलेण्या वाला विचार करता है कि इस बक्ष को जड़मूल से उखाड़कर फल खाने चाहिए। नील लेश्या वाला विचार करता है कि इस वृक्ष के स्कन्ध (तने) को काटकर फल खाने चाहिए। कापोत लेश्या बाला विचार करता है कि इस वृक्ष की शाखामों को काटकर फल खाने चाहिए, तेजोलेश्या वाला विचार करता है कि इस वृक्ष की उपशास्त्रानों को काटकर फल खाने चाहिए। पद्म लेण्यावाला विचार करता है कि फल तोड़कर खाने चाहिए। शुक्ल लेश्यावाला विचार करता है कि पक कर नीचे गिरे हुए फल खाने चाहिए। इन भावों के अनुसार वे वचन भी कहते हैं। उनके मानसिक विचारों तथा वचनों से लेश्या के तारतम्य का ज्ञान हो जाता है।
कृष्णलेश्या के कर्म व लक्षण का कथन चंडो रग मुचइ वेरं भंडरगसीलो य धम्मवयरहियो । बुट्ठो ग य एदि वसं लवखरणमेयं तु किण्हस्स ॥५०॥'
१. गो. जी. गाथा ३२३ से १२६ तक । सं. अ. १गा. १९२.४० गर भी हैं।
२. यह माथा कुछ पाब्दभेद के साथ धवल पु.२ पृ.५३३, प्रा. पं. ३. धवल पु.१ पृ. ३८८, पु. १६ पृ. ४६०% प्रा. पं. सं. ३,१ गा.