Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ५१७५१८
शुक्ललेश्या वाले के लक्षगा
रंग व कुरणइ पक्खवायं रात्रि य रिणवाणं समो य सम्बसि । रात्थि य रायद्दोसा
होत्रि य
गाथार्थ – शुक्ल लेश्या के होने पर जीव न पक्षपात करता है और न निदान करता है, वह
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सब जीवों में समान रहकर रागद्वेष व स्नेह से रहित होता है ।। ५१७ ॥
विशेषार्थ पक्षपात न करना, निदान को न बाँधना, सब जीवों में राग तथा अनिष्ट से द्वेष न करना, स्त्री-पुत्र मिश्र श्रादि में स्नेहरहित होना, के कर्म थवा चिह्न हैं ।
श्यामागंरा/ ५८६
सुक्क लेस्सस्स ।। ५१७॥ '
यह सब कथन उत्कृष्ट भाव लेश्याओं की अपेक्षा से किया गया है । इसी प्रकार द्रव्यलेश्या के कार्यों को भी प्ररूपणा करनी चाहिए ।
समदर्शी होना, इप्ट से ये सब शुक्ललेश्या बाले
अब ग्यारह गाथाओं द्वारा गति अधिकार का कथन किया जाता है । सर्व प्रथम एक गाथा द्वारा लेश्याओं के २६ अंश और उनमें से मध्य के आठ अंश आयु बन्ध योग्य होते हैं, इसका कथन किया जाएगा । उसके पश्चात् किम लेश्या से मरकर जीव किस गति में उत्पन्न होता है, इसका कथन दस गाथाओं द्वारा किया जाएगा 1
विशेषार्थं यह अधिकार धवल आधार पर लिखा जाएगा ।
लेस्सारणं खलु श्रंसा छब्बीसा होंति तत्थ मज्झिमया । श्रट्ट गरिस- कालभवा ।। ५१८ ।।
उगबंधरण जोगा
शङ्का - अपकर्ष का क्या स्वरूप है
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गाथार्थ - श्यायों के निश्चय से छब्बीस अंश हैं। उनमें से मध्य के आठ ग्रंग, जो प्राठ अपकर्षकाल में होते हैं, आयु बन्ध के योग्य हैं ।। ५१८ ।।
ग्रन्थ में नहीं है अतः इसका विशेषार्थं संस्कृत टीका के
समाधान - वर्तमान अर्थात् भुज्यमान आयु को अपकृष्य अपकृष्य अर्थात् घटाघटा कर परभव श्रायु के बन्ध योग्य होना सो अपकर्ष है । यदि किसी की आयु = १ वर्ष की है, उस श्रायु के दो तिहाई भाग अर्थात ५४ वर्ष बीत जाने पर ठीक तत्पश्चात् प्रथम समय से लगाकर एक अन्तर्मुहूर्त काल परभव सम्बन्धी आयु बंध योग्य प्रथम श्रपकर्ष होता है । २७ वर्ष जो शेष रह गये थे उसका भी दो तिहाई भाग अर्थात् १८ वर्ष बीत जाने पर यानी ( ५४ + १८) ७२ वर्ष की आयु बीत जाने पर और वर्ष आयु शेष रह जाने पर प्रथम अन्तर्मुहूर्त द्वितीय अपकर्ष होता है । ६ वर्ष का दो तिहाई भाग ( ६ वर्ष बीत जाने पर और तीन वर्ष प्रायु शेष रह जाने पर प्रथम अन्तर्मुहूर्तं तृतीय अपकर्ष होता है। इसी प्रकार चतुर्थ यदि अपकर्षो को सिद्ध कर लेना चाहिए। यदि इन आठ अपकर्षो में आयुबन्ध
१. धवल गु. १ पृ. ३६० पु. १६ पृ. ४६२ प्रा. पं. सं. म. १ मा १५२ ।