Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ४७६-४१५
संयममार्गणा/५६१
कराएगा, न किसी अन्य को उसे भोजन कराने की प्रेरणा करेगा और न कहेगा।।
जो चउ-विहं पि भोज्ज रयणीए णेव भुजदे णाणी । णय भुजावदि अण्णं गिसिविरमो सो हवे भोओ ॥३२॥ जो रिणसि-भुत्ति वदि सो उपवास करेदि धम्मासे । संवच्छरस्स माझे प्रारंभं चयदि रयणीए ॥३८३॥ [स्वामिकातिकेयानुप्रेक्षा]
—जो रात्रि में चारों प्रकार के भोजन को नहीं करता है और न दूसरे को रात्रि में भोजन कराता है वह रात्रिभोजन का त्यागी होता है। जो पुरुष रात्रिभोजन को छोड़ देता है वह एक वर्ष में छह महीने उपवास करता है और रात्रि में प्रारम्भ का त्याग करता है।
मण-वयण-काय-कय-कारियाणुमोएहि मेहुणं णवधा।
विवसम्मि जो विवरजई गुणम्मि सो सावो घट्ठो ॥२६६॥' - जो मन, बचन, काय और कुत, कारित, अनुमोदना इन नौ प्रकारों से दिन में मैथुन का त्याग करता है वह छठी प्रतिमाधारी श्रावक है।
.-इस प्रकार छठी प्रतिमा में मन, वचन, काय और कृत, कारित, अनुमोदना ( ३ ४ ३) इन नव कोटि से रात्रिभोजनत्याग होता है । सातवीं ब्रह्मचर्य प्रतिमा में स्त्री मात्र का त्याग होता है ।
मलबीज मलयोनि गलन्मलं पूतिगन्धि बीभत्सम् ।
पश्यन्नङ्गमनङ्गाद्विरमति यो ब्रह्मचारी सः॥१४३॥[रत्नकरण्ड श्रावकाचार] --जो व्रती शरीर को रजोवीर्य से उत्पन्न, अपवित्रता का कारण, नव द्वारों से मल को बहाने वाला तथा दुर्गन्ध और ग्लानि युक्त जानकर कामसेवन का सर्वथा त्याग कर देता है वह ब्रह्मचर्य प्रतिमा का धारक है। "पाठवी प्रारम्भत्याग प्रतिमा में सेवा, कृषि तथा व्यापार आदि वा परित्याग होता है ।
सेवा-कृषि-वाणिज्यप्रमुखाबारम्भतो ब्युपरमति ।
प्राणातिपात-हेतोर्योऽसावारम्भ-विनिवृत्तः ॥१४४॥ [रत्नकरण्डश्रावकाचार]
—जो श्रावक कृषि, सेवा और वाणिज्यादि रूप प्रारम्भ प्रवृत्ति से बिरक्त होता है, क्योंकि प्रारम्भ प्राणपीड़ा का हेतु है, वह प्रारम्भत्यागी थावक है।
नौवीं परिग्रह-त्याग प्रतिमा में वस्त्र मात्र परिग्रह रखा जाता है तथा सुवर्णादिक धातु का त्याग होता है।
१. शास्त्रसार समुच्चय पृ. १८७६ २. म्यामिवातिकेयानुप्रेक्षा। ३. वसुनन्दि थावकाचार । ४-५. चारिश्रपाई गा. २१ टीका !