Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ४७६.४.४७
संयममार्गगगा५५७
पानी छानना ८; अन्य मतानुसार मद्यत्याग १, मांसत्याग २, मधुत्याग ३ और पांच अणवत इस प्रकार पाठ मूलगुण हैं।
शङ्का-सात व्यसन कौन से हैं ?
समाधान-जना, मद्य, मांस, वेश्या, शिकार, चोरी और परस्त्री-सेवन ये महापाप रूप सात व्यसन हैं। इनका त्याग करना चाहिए। इनका विस्तार पूर्वक कथन बसुनन्दिश्रावकाचार आदि अन्यों मे जान लेना चाहिए।
सम्यक्त्व की रक्षा करने के लिए अन्य मत-मतान्तरों के शास्त्रों का श्रवण न करके अपनी बुद्धि को विशुद्ध-निर्मल रखना चाहिए।
इस सामान्य प्राचरण के अतिरिक्त दर्शनप्रतिमाघारी को निम्नलिखित बातों का भी ध्यान रखना आवश्यक है....मूली, नानी, मरणाल, लहसून, तुम्बी फल, कुसुम्भ की शाक, तरबूज और सूरणकन्द का भी त्याग करना चाहिए । अरणी, वरण. सोहजना और करीर, काञ्चनार इन पाँच प्रकार के फूलों का त्याग होता है। दो मुहूर्त के बाद नमक, तेल या घत में रखे हुए फल, प्राचार. मुरब्बा का त्याग और मक्खन तथा मांसादि का सेवन करने वाले मनुष्यों के बर्तनों का इन सबका त्याग, चमड़े के भाण्ड में रखे हुए जल, तल और हींग का त्याग होता है । भोजन करते समय हड्डी (अस्थि), मदिरा, चमड़ा, मांस, खून, पीव, मल, मूत्र और मृत प्राणी के देखने से, त्यागी हुई वस्तु के सेवन से, चाण्डालादि के देखने और उनके शब्द सुनने से भोजन का त्याग करना चाहिए । घुने, भकूड़े (फूलन से युक्त) और चलित स्वाद वाले अन्न का त्याग करना चाहिए। सोलह प्रहर के बाद के तक्र और दही का त्याग करना चाहिए। पान, औषध और पानी का भी रात्रि में त्याग करना चाहिए। यह सभो दर्शनप्रतिमा का प्राचार है।
दूसरी प्रतिमा का नाम व्रत प्रतिमा है। इसमें बारह व्रतों का पालन होता है।'
निरतिक्रमणमणुवत-पंचकमपि शोलसप्तकं चापि । धारयते निःशल्यो योऽसौ प्रतिनां मतो बतिकः ॥१३८॥ [रत्नकरण्डश्रावकाचार]
--जो धावक निःशल्य (माया, मिथ्या और निदान इन तीन शल्यों से रहित) होवार निरतिचार पाँच अणुव्रतों को और साथ ही सातों शीलव्रतों को (नीन गुण और चार शिक्षाद्रतों को) भी धारण करता है बह गणधर देवों के द्वारा द्रतिक पद का धारक (द्वितीय श्रावक.) कहा जाता है। बारह ब्रतों का स्वरूप पूर्व में कहा जा चुका है । पुनरुक्त दोष के कारण उनका यहाँ पर कथन नहीं किया जाता।
शङ्का.. -तीन गुगावत और चार शिक्षावत को शीलबत क्या कहा गया है ?
१. चारित्रपाहुड़ गा. २१ टीका 1 २. रत्नकरण्ड श्रावकाचार श्लोक ६५ । ३, चारित्रपाहुए गाथा २१ की टीका । ४. चारित्रमाहुड़ गाथा २१ की टीका ।