Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ४७०-४७३
संयममागमा / ५३७
गाथार्थ - जिसमें समस्त संयमों का संग्रह कर लिया गया है, ऐसे लोकोत्तर और दुरधिगम्य अभेदरूप एक यम को धारण करने वाला जीवापारिक संग होता है जो पुरानी साव व्यापाररूप पर्याय को छेदकर पाँच यम रूप धर्म में अपने को स्थापित करता है, वह जीव छेदोपस्थापक संयभी है ||४७१ ।। जो पाँच समिति और तीन गुप्तियों से युक्त होता हुआ सदा ही सावद्ययोग का परिहार करता है तथा पाँच यम रूप छेदोपस्थापना संयम को और एक यम रूप सामायिक संघम को धारण करता है, वह परिहारशुद्धि संयत होता है ||४७२ || जन्म से तीस वर्ष के पश्चात् तीर्थंकर के पादमूल में वर्ष पृथक्त्व तक प्रत्यास्थान पूर्व पढ़ने वाले के परिहारविशुद्धि संयम होता है। इस संयमवाला संध्या कालों को छोड़कर दो कोम गमन करने वाला होता है ||४७३ ||
विशेषार्थ - मूल शब्द 'समय' है। उससे 'सामायिक' शब्द की उत्पत्ति हुई है । 'समय' शब्द के दो अवयव हैं 'सम्' और 'अय' 'सम्' उपसर्ग का अर्थ 'एक रूप है अथवा 'एकीभूत' है । 'य' का अर्थ 'गमन' है । समुदायार्थ एकरूप हो जाना समय है। और समय ही सामायिक है। सम्यग्दर्शन सभ्यग्ज्ञान, संयम और तप से जो जीव का ऐक्य होना वह समय है । यह समय ही सामायिक है । २ वह सामायिक दो प्रकार की है -नियतकाल और श्रनियतकाल | स्वाध्याय आदि नियतकाल सामायिक है और ईर्यापथ आदि अनियतकाल सामायिक है । सामायिक को गुप्ति नहीं कह सकते, क्योंकि गुप्ति में तो मन के व्यापार का भी निग्रह किया जाता है, जबकि सामायिक में मानस प्रवृत्ति होती है। इसे प्रवृत्तिरूप होने से समिति भी नहीं कह सकते, क्योंकि सामायिक संयम में समर्थ व्यक्ति को समितियों में प्रवृत्ति का उपदेश है। सामायिक कारण है और समिति कार्य है ।" जीवित-मरण, लाभ-लाभ, संयोग-वियोग में, शत्रु-मित्र, सुख-दुःख में समता परिणाम सामायिक है । सर्व प्राणियों में मैं समता और रागद्वेषरहितता धारण करता हूँ। मेरा किसी के साथ बंर नहीं है, मैं सम्पूर्ण अभिलाषाओं का त्याग करता हूँ और निलभता स्वीकार करता हूँ। यह सामायिक का स्वरूप है ।" वह सामायिक छह प्रकार की है-
नामवरणा दच्चे खेत्ते काले तहेव भावे य ।
सामाइयहि एसो रिक्वेश्रो छव्विहो यो ||१७|| [ मुलाचार श्रधि. ७ ]
सामायिक छह प्रकार की है नाम सामायिक, स्थापना सामायिक, द्रव्य सामायिक, क्षेत्र सामायिक, काल सामायिक और भाव सामायिक | अथवा सामायिक में यह छह प्रकार का निक्षेप है।
नामसामायिक - वस्तु के शुभ नाम और अशुभ नाम सुनकर उनमें रागद्वेष का त्याग करना नामसामायिक है ।
स्थापना सामायिक कोई स्थापना शुभाकार युक्त, प्रमारणयुक्त, सर्व अवयवों से परिपूर्ण, साकार, मन को आह्लादित करने वाली होती है और कोई स्थापना अशुभग्राकार युक्त प्रमाणरहित, सर्व अवयवों से परिपूर्ण और भतदाकार होती है । उन पर रागद्वेष नहीं करना स्थापनासामायिक है ।
३. स. सि. ६ । १. रा. वा. ६।१८। ३ ४ ३
१. सर्वार्थसिद्धि ७ / २१ 1 २. मूलाचार ७ / १८ पृ. ४०४ । ५. मुलाचार गा. २३ पृ. २६ । ६. मूलाचार गा. ४२ पृ. ५२ ।