Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ३६७.३६८
ज्ञानमार्गरपा/४६१
समाधान नहीं, क्योंकि वह द्रव्यश्र त प्रात्मा का धर्म नहीं है। उसे जो पागम संज्ञा प्राप्त है, वह उपचार से प्राप्त है। वास्तव में, वह आगम नहीं है।
मुक्तिपर्यन्त इष्ट वस्तु को प्राप्त कराने वाली अणिमा आदि विक्रियायें लब्धि कही जाती हैं। इन लब्धियों की परम्परा जिस प्रागम से प्राप्त होती है या जिसमें उनकी प्राप्ति का
कहा जाता है वह परम्परालग्धि अर्थात् प्रागम है। उत्तर प्रतिवचन का दूसरा नाम है। जिस श्रु त का उत्तर नहीं है बह श्रु त अनुत्तर कहलाता है। अथवा उत्तर शब्द का अर्थ अधिक है, इससे अधिक चूंकि अन्य कोई भी सिद्धान्त नहीं पाया जाता, इसीलिए इस थ त का नाम अनुत्तर है।
___ यह प्रकर्ष से अर्थात कुतीयों के द्वारा नहीं स्पर्श किये जाने स्वरूप से जीवादि पदार्थों का निरूपण करता है, इसलिए वर्ण-पंतयात्मक द्वादशांग को प्रवचन कहते हैं। प्रथवा कारणभूत इस ज्ञान के द्वारा प्रमाण प्रादि के अविरोध रूप से जीवादि अर्थ कहे जाते हैं, इसलिए द्वादशांग भावथ त को प्रवचन कहते हैं।
शङ्खा–ज्ञान को करणपना कैसे प्राप्त है ?
समाधान नहीं, क्योंकि ज्ञान के बिना अर्थ में अविसंवादी वचन की प्रवृत्ति नहीं हो सकती। इस हेतु का सुप्त और मत्त के वचनों के साथ व्यभिचार होगा, यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि, उनके अविसंवादी होने का कोई नियम नहीं है।
जिसमें प्रकृष्ट बचन होते हैं वह प्रवचनी है, इस व्युत्पत्ति के अनुसार भावागम का नाम प्रवचनी है। अथवा जो कहा जाता है वह प्रवचन है, इस व्युत्पत्ति के अनुसार प्रवचन प्रर्थ को कहते हैं। वह इसमें है इसलिए वोपादान कारणक द्वादशांग ग्रन्थ का नाम प्रवचनी है । अद्धा काल को कहते हैं, प्रकृष्ट अर्थात् शोभन वचनों का काल जिस धति में होता है वह प्रवचनाखा अर्थात् ध तज्ञान है।
शङ्का-श्र तज्ञानरूप से परिणत हुई अवस्था में शोभन वचनों की ही प्रवृत्ति किसलिए होती है ?
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि अशोभन वचनों के हेतुभूत रागादित्रिक [राग, द्वेष, मोह] का वहाँ अभाव है।
'जो कहे जाते हैं। इस व्युत्पत्ति के अनुसार बचन शब्द का अर्थ जीवादि पदार्थ है। प्रकर्ष रूप से जिसमें वचन सन्निकुष्ट होते हैं, वह प्रवचन सन्निकर्ष रूप से प्रसिद्ध द्वादशांग थुतज्ञान है।
शङ्का-सन्निकर्ष क्या है ?
समाधान-एक वस्तु में एक धर्म के विवक्षित होने पर उसमें शेष धर्मों के सत्यासत्व का विचार तथा उसमें रहने वाले उक्त धर्मों में से किसी एक धर्म के उत्कर्ष को प्राप्त होने पर शेष धर्मों के उत्कर्षानृत्कर्ष का विचार करना सन्निकर्ष कहलाता है ।