Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
View full book text
________________
४६० गो. सा. जीयकाण्ड
गाथा २६९-४०३
शङ्कर-यहाँ शंकाकार कहता है कि अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र क्षेत्रविकल्पों के बीत जाने पर काल में एक समय बढ़ता है, यह घटित नहीं होता; क्योंकि, इस प्रकार बढ़ाने पर देशावधि का उत्कृष्ट क्षेत्र नहीं उत्पन्न हो सकता, व अपने उत्कृष्ट काल से असंख्यातगुणा काल उत्पन्न होगा। वह इस प्रकार से--देशावधि का उत्कृष्ट क्षेत्र लोक है। उत्कृष्ट काल एक समय कम पल्य है। ऐसी स्थिति में एक समय के यदि अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र क्षेत्रविकल्प प्राप्त होते हैं तो पावली के असंख्यातव भाग से कम पल्य में कितने क्षेत्रविकल्प प्राप्त होंगे, इस प्रकार इच्छाराशि से गुणित फलराशि में प्रमाण राशि का भाग देनेपर असंख्यात घनांगल ही उत्पन्न होते हैं, न कि उत्कृष्ट देशावधि का क्षेत्र लोक | अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र क्षेत्रविकाल्पों के बीत जाने पर यदि काल का एक समय बढ़ाता है तो गंगाल के प्रगंगात- भाग से हीन लोक में कितनी समयवृद्धि होगी, इस प्रकार फलराशि से गुणित इच्छाराशि को यदि प्रमाणराशि से अपतित किया जाय तो लोक का असंख्यातवाँ भाग पाता है, न कि देशावधि का उत्कृष्ट काल समय कम पल्य । इसलिए प्रावली के असंख्यातवें भाग से हीन समय कम पल्य का जघन्य अवधिक्षेत्र से रहित लोक में भाग देने पर लोक का असंख्यातवा भाग पाता है। इतने क्षेत्रविकल्पों के बीतने पर काल में एक समय वृद्धि होनी चाहिए, क्योंकि, अन्यथा पूर्वोक्त दोषों का प्रसंग आएगा?
समाधान-यह घटित नहीं होता, क्योंकि, एकान्ततः ऐसा स्वीकार करने पर वर्गणा के रासत्र में कहे हए क्षेत्रों की अनुत्पत्ति का प्रसंग ग्राएगा। बह इस प्रकारसे—काल की अपेक्षा पावली के संख्यातवें भाग को जाननेवाला क्षेत्र से अंगुल के संख्यातवें भाग को जानता है, इस प्रकार सूत्र में कहा गया है। काल से कुछ कम प्रावली को जाननेवाला क्षेत्र से घनांगुल को जानता है। काल की अपेक्षा प्रावली को जाननेवाला क्षेत्र से अंगुलपृथक्त्व को जानता है । काल की अपेक्षा अर्ध मास को जाननेवाला क्षेत्र की अपेक्षा भरत क्षेत्र को जानता है । काल की अपेक्षा साधिक एक मास को जानने वाला क्षेत्र से जम्बूद्वीप को जानता है । काल की अपेक्षा एक वर्ष की जाननेवाला क्षेत्र से मनुष्यलोक को जानता है, इस प्रकार इत्यादि क्षेत्र नहीं उत्पन्न होंगे, बयोंकि, लोक के असंख्यातवें भाग मात्र क्षेत्र की वृद्धि होने पर काल में एक समयकी वृद्धि स्वीकार की है और सूअविरुद्ध युक्ति होती नहीं है, क्योंकि, वह युक्त्याभास रूप होगी।
शङ्का-यदि यह नहीं घटित होता है तो न हो । परन्तु फिर उत्कृष्ट क्षेत्र और काल की उत्पत्ति कैसे सम्भव है ?
समाधान-वृद्धि के नियम का अभाव होने से उनकी उत्पत्ति घटित होती है। प्रथमतः अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र क्षेत्र विकल्पों के बीत जानेपर काल में एक समय बढ़ता है । वह इस प्रकार है- प्रावली के संस्थातवें भाग में से जघन्य काल को कम कर देने पर शेष प्रावली के संख्यातवें भाग मात्र कालवृद्धि होती है। इसे विरलिन कर जघन्य अवधिक्षेत्र से कम अंगुल के संख्यातवें भाग मात्र अवधि की क्षेत्र वृद्धि को समखण्ड करके देने पर प्रत्येक समय में अंगुल का असंख्यातवाँ भाग प्राप्त होता है । यहाँ यदि अवस्थित क्षेत्रवृद्धि है तो एक-एक रूपरित क्षेत्रों के बढ़ने पर काल में भी उस ही छोत्र का अधस्तन समय एक-एक बढ़ाना चाहिए । अथवा, यदि अनवस्थित बृद्धि है तो भी प्रथम विकल्प से लेकर अंगुल के असंख्यातवें भाग वृद्धि के असंख्यात विकल्प ले जाने चाहिए, क्योंकि प्रथम अंगुल के प्रसंख्यात भाग मात्र क्षेत्रविकल्पों के बीत जाने पर काल में एक समय बढ़ता है, ऐसा गुरु का उपदेश है। पुनः उपरिम अंगुल के असंख्यातवें भाग अथवा उसके ही संख्यातवें भाग