Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गया ६६६-४०३
जानमार्गमा / ४८६
प्रावलिप्रसंखभागो जहणकालो कमेण समयेण । बदि देसोहिवरं पल्लं समकरणयं जाब ||४००॥ मंगलप्रसंखभागं धुवरूयेण य असंखवारं तु । श्रसंखसंखं भाग प्रसंखवारं तु श्रद्ध खगे ||४०१ || ध्रुवद्ध वरूयेण य प्रवरे खेत्तम्हि वड्ढिदे खेत्ते । अवरे, कालम्हि पुणो एक्केक्कं चड्ढदे समयं ||४०२ || संखातीवासमा पत्रपभिगो संखा कालं श्रस्सिय पढमादी कंडये वोच्छं ||४०३ ||
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गाथार्थ - अंगुल के प्रसंख्यातवें भागप्रमाण द्रव्य विकल्प हो जाने पर क्षेत्र में एक आकाशप्रदेश बढ़ता है। जब तक सम्पूर्ण लोक न हो जाये तब तक इसी क्रम से वृद्धि करनी चाहिए ।। ३६६॥ श्रावली का असंख्यातवाँ भाग जघन्य काल का प्रसारण है, वह क्रम से एक-एक समय बढ़ता है जब तक देशावधि का उत्कृष्ट काल एक समय कम पल्य न हो जावे ||४००॥ अंगुल के असंख्यातवें भाग संख्यातवार व वृद्धि होती है । अंगुल के असंख्यातवें भाग व संख्यातवें भाग प्रमाण असंख्यात वार नववृद्धि होती हैं ||४०१ || जघन्य क्षेत्र में ध्रुव व अन व रूप से क्षेत्रवृद्धि होने पर जघन्य काल में एक-एक समय की वृद्धि होती है || ४०२ ॥ प्रथम पर्व में ( ध्रुव व अध्रुव) उभय रूप से असंख्यात समयों की वृद्धि होती है। क्षेत्र और काल के शाश्रय से प्रथमादि काण्डकों का कथन किया जाएगा ||४०३ ||
विशेषार्थ – अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र द्रव्य और भाव के विकल्प हो जाने के पश्चात् जघन्य क्षेत्र के ऊपर एक श्राकाशप्रदेश बढ़ता है। इसप्रकार बढ़ने पर क्षेत्र का द्वितीय विकल्प होता है, परन्तु काल जघन्य ही रहता है।" पश्चात् पूर्व के द्रव्यविकल्प को अवस्थित भागहार के ऊपर समखण्ड करके देनेपर उनमें एक खण्ड उपरिम द्रव्यविकल्प होता है। पूर्व के भावविकल्प को तत्प्रायोग्य असंख्यात रूपों से गुणा करने पर अवधि का उपरिम भावविकल्प होता है। इस प्रकार पुन:पुनः करके अंगुल के प्रसंख्यातवें भाग मात्र द्रव्य और भाव के विकल्प उत्पन्न कराने चाहिए । इस प्रकार उक्त विकल्पों को उत्पन्न कराने पर द्वितीय क्षेत्र विकल्प के ऊपर एक प्रकाशप्रदेश को बढ़ाना चाहिए । तत्र क्षेत्र का तृतीय विकल्प होता है । काल जघन्य ही रहता है। धीरे-धीरे भ्रान्ति से रहित, निराकुल, समचित्त व श्रोताओं को सम्बोधित करनेवाला व्याख्यानाचार्य अंगुल के प्रसंख्यातवें भागमात्र द्रव्य और भाव के विकल्पों को उत्पन्न कराके क्षेत्र के चतुर्थ, पंचम, छठे एवं सातवें श्रादि अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र तक अवधि के क्षेत्रविकल्पों को उत्पन्न कराके पश्चात् जघन्य काल के ऊपर एक समय बढ़ावें । इस प्रकार बढ़ाने पर काल का द्वितीय विकल्प होता है । फिरसे भी अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र द्रव्य और भाव के विकल्पों के बीत जानेपर क्षेत्र में एक आकाशप्रदेश बढ़ाना चाहिए। इस क्रम से अंगुल के प्रसंख्यातवें भाग मात्र क्षेत्र विकल्पों के बीत जानेपर काल में एक समय बढ़ाकर काल का तृत्तीय विकल्प उत्पन्न कराना चाहिए ।
१. धवल पु. ६ पृ. २६ ।