Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाया ४६६
संयममार्ग/ ५३३
के ( सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय और यथाख्यात) इन पाँच भेदों का उपदेश कैसे बन सकता है ?
समाधान यदि पाँच प्रकार का संग्रम घटित नहीं होता है, तो मत हो ।
शङ्का - संयम कितने प्रकार का है ?
समाधान- संयम चार प्रकार का है, क्योंकि पाँचवा संयम पाया ही नहीं जाता ।"
जिसके हिंसा का परिहार हो प्रधान है ऐसे शुद्धिप्राप्त संयतों को परिहार शुद्धिसंयत कहते हैं। तीस वर्ष तक अपनी इच्छानुसार भोगों को भोग कर सामान्य रूप से अर्थात् सामायिक संयम को शौर विशेष रूप से अर्थात् छेदोपस्थापना संयम को धारण कर द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के अनुसार परिमित या अपरिमित प्रत्याख्यान के प्रतिपादन करने वाले प्रत्याख्यान पूर्व रूपी महार्णव में अच्छी तरह प्रवेश करके जिसका सम्पूर्ण संशय दूर हो गया है और जिसने तपोविशेष से परिहारऋद्धिको प्राप्त कर लिया है, ऐसा जीव तीर्थकर के पादमूल में परिहारशुद्धिसंयम को ग्रहण करता है ।
परिहार-शुद्धि-संयम प्रमत्त और प्रप्रमत्त इन दो गुणस्थानों में होता है । *
शङ्का - ऊपर के आठवें श्रादि गुणस्थानों में परिहार-शुद्धि-संयम क्यों नहीं होता ?
समाधान- नहीं, क्योंकि जिनकी श्रात्माएँ ध्यानरूपी अमृत के सागर में निमग्न हैं, जो बचनयम (मौन) का पालन करते हैं और जिन्होंने आने-जाने रूप शरीर सम्बन्धी सम्पूर्ण शरीर व्यापार को संकुचित कर लिया है, ऐसे जीवों के शुभाशुभ क्रियाओं का परिहार बन ही नहीं सकता है, क्योंकि गमनागमन आदि क्रियाओं में प्रवृत्ति करने वाला ही परिहार कर सकता है, प्रवृत्ति नहीं करने वाला नहीं । इसलिए ऊपर के आठवें आदि ध्यान अवस्था को प्राप्त गुणस्थानों में परिहार-शुद्धि-संयम नहीं बन सकता है ।
शङ्का - परिहार ऋद्धि की आगे के आठवें आदि गुणस्थानों में भी सत्ता पाई जाती है, अतः एव वहाँ पर भी इस संयम का सद्भाव मान लेना चाहिए ?
समाधान- नहीं, क्योंकि यद्यपि आठवें आदि गुणस्थानों में परिहार ऋद्धि पाई जाती है, किन्तु वहाँ पर परिहार करने रूप उसका कार्य नहीं पाया जाता। इसलिए आठवें आदि गुणस्थानों में परिहार- विशुद्धि-संयम का प्रभाव कहा गया है।"
मिक क्षायिक और क्षायोपशमिक लब्धि से जीव सामायिक - छेदोपस्थापन शुद्धि संयत
होता है ।
शङ्का – सामायिक और छेदोपस्थापन संयम क्षयोपगम लब्धि में भले ही हो, किन्तु उनके शनिक और क्षायिक लब्धि नहीं हो सकती, क्योंकि अनिवृत्तिकररण गुणस्थान से ऊपर इन संयतों
१ धवल पु १ पृ. ३७७ । ४. धवल पु. १ पृ. २७५ ॥
२. धवल पु. १ पृ. ३७० ३७१ ।
३. वल पु. १ पृ. ३०५ सूत्र १२६ ॥ ५. धवल पु. १ पृ. ३७६ । ६. धवल पु. ७ पृ. ६२ सूत्र ४६ ।