Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा '४५१
ज्ञानमार्गणा/५२१ गाथार्थ-औदारिक शरीर की एक समय संबंधी निर्जरा का प्रमाण ऋजुमति का जवन्य द्रव्य है तथा उत्कृष्ट चक्षुरिन्द्रिय की निर्जराप्रमारण द्रव्य है ।।४५१।।
विशेषार्थ द्रव्य की अपेक्षा वह जघन्य से अनन्तानन्त विस्रसोपचय से सम्बन्ध रखनेवाले प्रौदारिव शरीर के एक समय में निर्जरा को प्राप्त होने वाले द्रव्य को जानता है और उत्कृष्ट रूप से एक समय में होने वाले इन्द्रिय के निर्जरा को प्राप्त होने वाले द्रव्य को जानता है। इन उत्कृष्ट और जघन्य के मध्यम के जितने द्रव्य विकल्प हैं उन्हें अजघन्यानुत्कृष्ट ऋजुमति मनःपर्यय ज्ञानी जानता है ।
ऋजुमतिमनःपर्ययज्ञान जघन्य से एक समय सम्बन्धी औदारिक शरीर को निर्जरा को जानता है।
शडा-वह प्रीदारिक शरीर की निर्जरा जघन्य, उत्कृष्ट और तद्व्यतिरिक्त के भेद से तीन प्रकार की है। उनमें से किस निर्जरा को वह जानता है ?
समाधान -तद्व्यतिरिक्त औदारिक शरीर की निर्जरा को जानता है, क्योंकि यहां सामान्य निर्देश है।
नक ज्ञान उमार्ग से व राम गहन्धी इन्द्रिय निर्जरा को जानता है ।।
शङ्का-प्रौदारिक-शरीर-निर्जरा और इन्द्रिय-निर्जरा के बीच कोई भेद नहीं है. क्योंकि, इन्द्रियों से भिन्न औदारिक शरीर का अभाव है ?
समाधान—यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि यहाँ सब इन्द्रियों का ग्रहण नहीं है। शङ्का-फिर कौनसी इन्द्रिय का ग्रहण है ?
समाधान - चक्षुरिन्द्रिय का ग्रहण है, क्योंकि वह शेष इन्द्रियों की अपेक्षा अल्प प्रमाण रूप है व अपने प्रारम्भक पुद्गलों की श्लक्ष्णता अर्थात् सूक्ष्मता से भी युक्त है ।
शङ्का-घाण और श्रोत्र इन्द्रिय की अपेक्षा चक्षुरिन्द्रिय के विशालता देखी जाती है ?
समाधान -ऐसा नहीं है, क्योंकि चक्षुगोलक के मध्य में स्थित मसूर के प्राकार वाले तारा को चक्षुरिन्द्रिय स्वीकार किया है।
शङ्का-चक्षुरिन्द्रिय निर्जरा भी जघन्य, उत्कृष्ट और तद्व्यतिरिक्त के भेद से तीन प्रकार है, उनमें कौनसी निर्जरा का ग्रहण है ?
समाधान-तद्व्यतिरिक्त निर्जरा का ग्रहण है, क्योंकि उसका सामान्य निर्देश है।
जघन्य व उत्कृष्ट द्रव्य के मध्यम द्रव्यविकल्पों को तद्व्यतिरिक्त ऋजुमति मनःपर्ययज्ञानी जानता है । १. प. पु. १३ पृ. ३३७ । २. .पु. ६ पृ. ६३ । ३. घ.पु. ६ पृ. ६४ ।