Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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५३०/गो. सा. जीवकाण्ड
गाथा ८६५-४६६
१३. संयममार्गणाधिकार
संयम का लक्षगा बदसमिवि-कसायाणं दंडारणं तहिदियारण पंचण्हं ।
धारणपालग-रिणग्गह-चाग-जो संजमो भरिगो' ॥४६॥ गाथार्थ--श्रतों का धारण करना, समितियों का पालन करना, कषायों का निग्रह करना, (मन-वचन-काय रूप) दण्डों का त्याग करना तथा पाँच इन्द्रियों का जीतना संयम कहा गया है ।।४६५॥
विशेषार्थ-संयमन करने को संयम कहते हैं। इस प्रकार का लक्षण करने पर मात्र द्रव्य-यम (भावचारित्र शून्य द्रव्यचारित्र) संयम नहीं हो सकता, क्योंकि संयम शब्द में ग्रहण किये गये 'सं शब्द से उसका निराकरण हो जाता है ।
शङ्का--यहाँ पर यम से सभी समितियों का ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि ममितियों के न होने पर संयम नहीं बन सकता है ?
समाधान - ऐसी शंका ठीक नहीं है, क्योंकि संयम में दिये गये 'सं' शब्द से सम्पूर्ण समितियों का ग्रहण हो जाता है।
अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इन पाँचों महाव्रतों का धारण करना, ईर्याभापा-एषणा-प्रादाननिक्षेपण-उत्सर्ग इन पांच समितियों का पालन, क्रोध, मान, माया व लोभ इन चार कषायों का निग्रह करना, मन, वचन और काय रूप इन तीन दण्डों का त्याग करना और पाँच इन्द्रियों (स्पर्शन, रसना, प्रारण, चक्षु, श्रोत्र) के विषयों का जीतना संयम है ।
शङ्का.... कितने ही मिथ्यादृष्टि जीव संयत देखे जाते हैं ?
समाधान नहीं, क्योंकि सम्यग्दर्शन के बिना संयम की उत्पत्ति नहीं हो सकती है। संयम में 'सम्' उपसर्ग सम्यक अर्थ का वाची है, इसलिए सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानपूर्वक 'यता:' अर्थात् जो बहिरंग और अन्तरंग प्रायवों से विरत हैं वे संयत हैं। क्योंकि आप्त, आगम और पदार्थों में जिस जीव के श्रद्धा उत्पन्न नहीं हुई है, तथा जिसका चित्त तीन मूढ़ताओं से व्याप्त है, उसके रांयम की उत्पत्ति नहीं हो सकती है।
मंगय की उत्पत्ति का कारण बादरसंजलणुदये सुहमुदये समखये य मोहस्स । संजमभावो पियमा होदित्ति जिणेहि रिणहि ॥४६६।।
१. धवल पू.१ पृ.१४५ गाथा ६२: प्रा. पं.सं. न. गाथा १२७.२७ . २. धवल पू.१.१४४ । ३. अथल पु. १ पृ. ३५८ । ४. धवल पु. १ पृ. ३६६ । ५. धवल पु. १ पृ. १७७ ।