Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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४६४ / गो. सा. जीवकाण्ड
गाथा ४०५
मनुष्यों के उत्सेध के कथन के सिवा अन्यत्र प्रमाणांगुल आदि का ग्रहण करना चाहिए, ऐसा गुरु का उपदेश है । इस अंगुल के प्रसंख्यात खण्ड करने चाहिए। जिनमें से एक खण्डमात्र जिस अवधिज्ञान का अवधि से सम्बन्ध रखनेवाला क्षेत्र धनप्रतर प्राकार रूप से स्थापित करने पर होता है वह काल की अपेक्षा आवली के असंख्यातवें भाग को जानता है, क्योंकि ऐसा स्वभाव है। श्रावली के असंख्यातवें भाग काल के भीतर अतीत और अनागत द्रव्य को जानता है ।
शंका- अवधिज्ञान क्षेत्र और काल का क्या एक ही विकल्प होता है या अन्य भी विकल्प है ? समाधान-गाथा में 'दो वि संखेज्जा' ऐसा कहा है अर्थात् क्षेत्र और काल ये दोनों ही संख्यातवें भाग प्रमाण भी होते हैं ।
शङ्का – किनके संख्यातवें भाग. प्रमाण होते हैं ?
समाधान - अंगुल के और प्रावली के ।
क्षेत्र की अपेक्षा अंगुल के संख्यातवें भाग को जानने वाला काल की अपेक्षा श्रावली के संख्यातव भाग को ही जानता है। क्षेत्र की अपेक्षा एक अंगुल प्रमाणक्षेत्र को जानने वाला काल की अपेक्षा श्रावली के भीतर जानता है। यहाँ पर 'अंगुल से प्रमाणघनांगुल का और 'आवलियंती' से कुछ कम आवली का ग्रहण होता है। जिस अवधिज्ञान का क्षेत्र घनप्रतराकार रूप से स्थापित करने पर अंगुल पृथक्त्व प्रमाण होता है वह काल की अपेक्षा एक सम्पूर्ण आवली को जानता है ।"
श्रावलियधत्तं घणहत्थो तह गाउनं मुहसंतो ।
जोधरण भिष्णमुहत्तं विवसंतो पण्णवीसं तु ॥ ४०५ ||
।
नकोस
गाथार्थ - जहाँ काल श्रावली पृथक्त्व प्रमाण है वहाँ क्षेत्र घनहाथ है । जहाँ क्षेत्र है वहां काल अन्तर्मुहूर्त है। जहां क्षेत्र घनयोजन है वहाँ काल भिन्नमुहूर्त है। जहाँ काल कुछ कम एक दिवस प्रमाण है वहां क्षेत्र पच्चीस घन योजन है ॥४०५॥
विशेषार्थ - जिस अवधिज्ञान का क्षेत्र धनप्रतराकार रूप से स्थापित करने पर नहस्त प्रमाण होता है वह काल की अपेक्षा श्रावली पृथक्त्व है । जिस अवधिज्ञान का क्षेत्र घनप्रतराकाररूप से स्थापित करने पर घनकोस प्रमाण होता है वह काल की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त है । जिस अवधिज्ञान का क्षेत्र घनप्रतराकार रूप से स्थापित करने पर घनयोजन प्रमाण होता है वह काल की अपेक्षा भिन्न मुहूर्त अर्थात् एक समय कम मुहूर्त है ।
शङ्का - अवधिज्ञान निवद्ध क्षेत्र का घनाकार रूप से स्थापित करके किसलिए निर्देश किया
गया है ?
समाधान — नहीं, क्योंकि अन्यथा काल प्रमाणों से पृथग्भूत क्ष ेत्र के कथन करने का अन्य
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१. धवल पु. १३. ३०४-३०५ । २. धवल पु. १३ पृ. ३०६ पु. ६ पृ. २५, म.बं. पु. १ पृ. २१ । मुद्रित पुस्तकों में पाठ अशुद्ध है ।