Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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५०४/गो. सा. जीवकाण्ड
गाथा ४२२-४२३
जो प्रमाण प्रावे, उसका भाग परमावधि के विवक्षित भेद के संकलित धन में देने से जो प्रमाण यावे; उतनी जगह लोक को स्थापित करके परस्पर में गुणित करने पर जो प्रमाण प्राबे वह उस विवक्षित भेद में गुणकार होता है। उस गुणकार से देशावधि के उत्कृष्ट क्षेत्र लोक को गुणा करने पर जो प्रमाण प्रावे उतना परमावधि के उस विवक्षित भेद में क्षेत्र का प्रमाण होता है। तथा उसी गुणकार से देशावधि के उत्कृष्ट काय (समय कम पल्य) को गरिएत करने पर परमारभि ने उनी जिगाति भेद संबंधी काय का प्रमाण आता है। इस करणसुत्र के अनुसार किसी भी पद का गुणकार प्राप्त किया जा सकता है।
इस सम्बन्ध में प्रवलकार ने निम्न प्रकार से कथन किया है
देय राशि के अर्धच्छेदों से युक्त विरलन राशि के अर्धच्छेद उत्पन्न राशि की वर्गशलाका होते हैं। विरलन राशि के अर्धच्छेद यहाँ तेजकायिक जीवों के अर्धच्छेदों से कुछ अधिक दूने है, क्योंकि वे तेजकायिक राशि के वर्ग से नीचे स्थित राशि के अधच्छेद करने पर उत्पन्न होते हैं। इनका प्रक्षेप करने पर प्रादि के वर्ग से लेकर परमावधि के चढ़ित अध्वान होता है। तेजकायिक राशि के अर्धच्छेदों से कुछ अधिक दुगुरणे मात्र इस चढ़ित अध्वान को तेजकायिक राशि की वर्गशलाकामों से खण्डित कर अर्धरूप कम। इससे तेजकायिक राशि की वर्गशलाकानों को गुणित करने पर तेजकायिक राशि से ऊपर चढ़ित अध्वान होता है। यह परमावधि का उत्कृष्ट क्षेत्र होता है।'
प्रावलिनसंखभागा जहण्णदश्वस्स होंति पज्जाया । कालस्स जहरणादो प्रसंस्खगुणहीणमेत्ता हु ॥४२२।। सन्योहित्ति य कमसो प्रावलिअसंखभागगुरिणदकमा ।
दव्वारणं भावाणं पदसंखा सरिसगा होति ।।४२३।। गाथार्थ-पावली के असंख्यातवें भाग प्रमाण जघन्य द्रव्य को पर्याय अवधिज्ञान का जधन्य भाव विषय हैं । वे पर्यायें जघन्य-काल से असंख्यातगुणहीन हैं ।।४२२॥ जघन्य देशावधि से लेकर सर्वावधि पर्यंत द्रव्य तो क्रम से खण्डित होता जाता है और भाव आवली के प्रसंध्यातवें भाग से गुणित होता जाता है । अत: द्रव्य व भाव के पदों की संख्या सदृश है ।।४२३।।
विशेषार्थ - पावली के असंख्यातवें भाग का प्रावली में भाग देने पर जघन्य अवधि का काल पावली के असंख्यातवें भाग मात्र होता है। अपने विषयभूत जघन्य द्रव्य की अनन्त वर्तमान पर्यायों में से जघन्य अवधिज्ञान के द्वारा विषयीकृत पावली के असंख्यातवें भाग मात्र पर्यायें जघन्य भाव है। किन्तु काल की अपेक्षा इन वर्तमान पर्यायों का प्रमाण असंख्यात गुणहीन है । अर्थात् काल के असंख्यातवें भाग प्रमाण भावों की (वर्तमान पर्यायों की) संख्या है।
देशावधिज्ञान के द्वितीय विकल्प में द्रव्य तो हीन और भाव अधिक होता जाता है किन्तु क्षेत्र और काल जघन्य ही रहते हैं, क्योंकि यहाँ उनकी वृद्धि का अभाव है। इसी प्रकार तृतीय, चतुर्थ
१. धवल पु. ६ पृ. ४६1 २. ध.पु. ६ पृ. २६-२७ ।