Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ४१६-४१८
ज्ञानमार्गगा/५०१
परमोरि इस्लभेदा नेत्तिसेना हु तेत्तिया होति ।
तस्सेव होतकालवियप्पा विसया असंखगुरिणदकमा ॥४१६।। गाथार्थ-द्रव्य की अपेक्षा परमावधि के जितने भेद हैं, उतने ही भेद क्षेत्र और काल की अपेक्षा हैं, परन्तु उनका विषय असंख्यात गुणित क्रम से है ॥४१६।।
विशेषार्थ- परमावधि ज्ञान में द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की युगपत् वृद्धि होती है। इसी लिए द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव सम्बन्धी विकल्पों के लिए एक ही शलाकाराशि है, भिन्न-भिन्न शलाकाराशि नहीं है। तेजस्कायिक के अवगाहना विकल्पों से तेजस्कायिक जोवराशि को गुणा करने से वह शलाकाराशि उत्पन्न होती है। क्षेत्रोपम अग्नि जीवों से देशावधि के उत्कृष्ट द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव की खण्डन और गुणन रूप बार शलाका से शोधित द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव को उत्कृष्ट परमावधि जानता है। इस सब कथन से सिद्ध होता है कि परमावधि में जितने भेद द्रव्य के हैं उतने ही भेद धोत्र, काल और भाव के हैं । उनमें कोई विभिन्नता नहीं है ।
प्रावलिमसंखभागा इच्छिवगच्छधरणमारणमेत्ताओ। देसावहिस्स होते काले वि य होति संवग्गे ॥४१७।। गच्छसमा तत्कालियतीवे रूऊरणगच्छधणमेत्ता । उभये वि य गच्छस्स य घरगमेत्ता होति गुणगारा ॥४१८।।
गाथार्य-इच्छित गच्छ के संकलम धन प्रमाण मात्र आवली के असंख्यातधे भागों का संवर्ग करने पर देशावधि के उत्कृष्ट क्षेत्र व काल का गुरणाकार होता है । इच्छित गच्छसंख्या को इच्छित गच्छ से अन्यवाहित पूर्व के गच्छ के संकलित धन में, अर्थात् विवक्षित गच्छप्रमाण में से एक कम करके जो संख्या उत्पन्न हो उसके संकलित धन में, मिलाने से विवक्षित गच्छ के संकलित धन का प्रमाण होता है, उतने प्रमाण पावली के असंख्यातवें भागों को संवर्ग (परस्पर गुणा) करने से गुणाकार का प्रमारण होता है ।।४१७-४१८।।
विशेषार्थ-जिस नम्बर के भेद की विवक्षा हो, एक से लगाकर उस विवक्षित भेद पर्यन्त एक-एक अधिक अंकों को जोड़ने से जो प्रमाण पावे उतना ही उसका संकलित धन होता है। जैसे प्रथम भेद में १ ही अंक है अतएव उसका संकलित धन 'एक' जानना चाहिए। दूसरे भेद में संकलित धन का प्रमाण-..१+२=३ है। तीसरे भेद में संकलित धन का प्रमाण १+२+३ = ६ होना है। चतुर्थ भेद में संकलित धन का प्रमागग १ + २-३+४= १० होता है। पंचम भेद में संकलित धन का प्रमाण =१५ २३ : ४ - ५-१५ होता है। छठे भेद में संकलित धन का प्रमाण = १+२+ ३+४+ ५ + ६ - २१ होता है। इस तरह से जिस स्थान में जितना भी संकलित धन का प्रमाण पाता है उतनी बार पावली के प्रसंख्यातवें भागों को रखकर परम्पर गृरिणत करने पर जो प्रमाण प्रात्रे
१. "परमोहीए पुगण दव-खेत-काल-भावारामक्कमेण अपडी होदि नि वत्तव्वं ।" [धवल पु. १३ पृ. ३१०] । २. धवल पु. १३ पृ. ३२५। ३. धवल पु. ६ पृ. ४७ ।