Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ३६४-३६८
ज्ञानमार्गरणा/४७ तेजस नोकर्म के संचित हुए प्रदेशपिण्ड को तैजसशरीर कहते हैं। उसे जानता हुआ क्षेत्र की अपेक्षा असंख्यात द्वीप-समुद्रों को जानता है और काल की अपेक्षा असंख्यात वर्ष सम्बन्धी अतीत और अनागत द्रव्य को जानता है। पाठ को सम्बन्धी कर्मस्थिति के संचय को कार्मणशरीर कहते हैं। उसे जानता हुआ भी अवधिज्ञानी क्षेत्र की अपेक्षा असंख्यात द्वीपसमुद्रों को और काल की अपेक्षा असंख्यात कर्मों को जानता है। इतनी विशेषता है कि तेजसशरीर सम्बन्धी क्षेत्र और काल से इसका क्षेत्र और काल असंख्यातगुणा होता है ।
शङ्का-तेजसशरीर नोकर्म के संचय से कार्मरणशरीर का संचय अनन्नगुणा होता है, इसलिए क्षेत्र और काल असंख्यातगुणे नहीं बनते ?
समाधान—यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, प्रदेशों की अपेक्षा अनन्तगुरणे होने पर भी तेजस स्कन्धों से कार्मण स्कन्ध अतिसूक्ष्म होते हैं, इसलिए इसके क्षेत्र और काल के प्रसंख्यातगुरणे होने में कोई विरोध नहीं आता। दूसरे ग्राह्यता (ग्रहणयोग्यता) कुछ परमाणुप्रचय के विस्तार की अपेक्षा नहीं करती है, क्योंकि, चक्ष के द्वारा ग्रहरा किये जाने योग्य भिण्डी और रजगिरा के करगों की अपेक्षा बहुत परमाणुगों के द्वारा निर्मित पवन में वह (ग्राह्यता) नहीं पाई जाती। कि तैजसशरीर की अवगाहना से कार्मण शरीर की अवगाहना एक जोवद्रव्य सम्बन्धी होने से समान होती है, इसलिए अवधिज्ञान के द्वारा ग्राह्य गुण (ग्रहणयोग्यता) भी दोनों के सश हों, ऐसा कह्ना भी युक्त नहीं है, क्योंकि समान अवगाहनारूप से स्थित औदारिकशरीर और कार्मणशरीर के साथ तथा दूध और पानी के साथ इस बारा व्यभिचार आता है।
तेजस द्रव्य का अर्थ विस्त्रसोपचय से रहित एक तंजसवर्गणा है। उसे जो अवधिज्ञान ग्रहण करता है, उस अवधिज्ञान से सम्बन्ध रखनेवाले क्षेत्र का प्रमाण असंख्यात द्वीप-समुद्र होता है और काल असंख्यात्त वर्ष होता है। इतनी विशेषता है कि कार्मणशरीर के क्षेत्र और काल से इसका क्षेत्र और काल असंख्यातगुणा होता है, क्योंकि कार्मणशरीर के कर्मपुज से तंजस को एक वर्गणा के प्रदेश अनन्तगुणे हीन उपलब्ध होते हैं या उससे सूक्ष्म होते हैं।
शङ्का-'तेजस द्रव्य' ऐसा कहने पर उसका एक समयप्रबद्ध क्यों नहीं ग्रहण किया जाता है ?
समाधान नहीं, क्योंकि आगे कहे जाने वाले द्रव्यार्थता नामक अनुयोगद्वार में द्रव्य शब्द की रूढ़िवश वर्गणा अर्थ में ही प्रवृत्ति देखी जाती है ।
भाषा द्रव्य का अर्थ भाषाबर्गणा का एक स्कन्ध है। उसे जो अवधिज्ञान जानता है उस अवधिज्ञान से सम्बन्ध रखने वाले क्षेत्र का प्रमाण असंख्यात डीप-समुद्र और काल का प्रमाण असंख्यात वर्ष है। किन्तु तैजसवर्गणा सम्बन्धी क्षेत्र और काल से भाषावर्गरणा सम्बन्धी क्षेत्र और काल असंख्यातगुणा होता है।
शङ्खा--तेजस की एक वर्गणा के प्रदेशों से अनन्तगुगणे प्रदेशों द्वारा एत्र भाषावर्गणा निष्पन्न होती है। अतः ऐसे अत्यन्त भारी स्कन्ध को विषय करने बाला अवधिज्ञान बड़ा कैसे हो सकता है ?
समाधान--नहीं, क्योंकि तैजस की एक वर्गगा की अवगाहना से असंध्यात गुणो हीन, अवगाहना को धारण करने वाली भाषावर्गणा यद्यपि प्रदेशों की अपेक्षा अनन्त गुणी होती है, फिर भी उसे विषय धरने बाले अवधिज्ञान के बड़े होने में कोई विरोध नहीं पाता।