Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ३६४-३९७
ज्ञानमार्गणा/४८५
है। उससे असंख्यातगुणी बादरतेजस्कायिक पर्याप्त की उत्कृष्ट अवगाहना है । उत्कृष्ट अवगाहना में से जघन्य अवगाहना को कम करके शेष में जघन्य अवगाहना सम्बन्धी एक रूप का प्रक्षेप करके सामान्य तेजस्कायिक राशि को गुणित करने पर, परमावधि के द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की शलाकाराशि उत्पन्न होती है। उसको पृथक् स्थापित करना चाहिए। देशावधि के उत्कृष्ट द्रव्य को अवस्थित विरलन से (ध्रुवहार से) समखण्ड करके देने पर उनमें एकरूपधरित परमावधि का जघन्य द्रव्य होता है । शलाकाओं में एक रूप कम करना चाहिए। पुनः परमावधि के जघन्य द्रव्य को अवस्थित बिरलना से (ध्र वहार से) समखण्ड करके देने पर उनमें एक खण्ड परमावधि का द्वितीय द्रव्य विकल्प होता है शलाकारों में से एक रूप कम करना चाहिए। पुनः द्वितीय विकल्प के जघन्य द्रव्य को अबस्थित विरलना से (ध्र बहार से) समखण्ड करके देने पर उनमें एक खण्ड तृतीय विकल्प रूप द्रव्य होता है। शलाकाओं में से अन्य एक रूप कम करना चाहिए। चतुर्थ, पंचम, छठे और सातवें
आदि विकल्पों को इसी प्रकार ले जाना चाहिए, क्योंकि यहाँ कोई विशेषता नहीं है । परमावधि के द्विचरम द्रव्य को अवस्थित विरलना (भ्र बहार) से समखण्ड' करके देने पर अन्तिम द्रव्यविकल्प होता है। परमावधि के उत्कृष्ट (अन्तिम) द्रव्य को अवस्थित विरलना से (ध्र बहार) समखण्ड करके देने पर एक परमाणु प्राप्त होता है, वही सर्वावधि का विषय है। सर्वावधि एकविकल्प रूप है।'
जितनी परमावधि की शलाकाराशि है उतने ही परमावधि के विकल्प हैं और उतनी ही बार ध्र बहार से द्रव्य खण्डित किया गया ।परमाबधि के विकल्प के अतिरिक्त एक बार परमाणु प्राप्त करने के लिये ध्र बहार का भाग दिया गया। देशावधि का द्विचरम विकल्प कार्मण वर्गणा है अतः कार्मण वर्गणा को देशावधि का नरम अर्थात् उत्कृष्ट विकल्प प्राप्त करने के लिए ध्र वहार का भाग दिया : गया । देशावधि का चरम भ्र वहार और सर्वावधि का ध्रुवहार ये दो ध्र वहार परमावधि के विकल्पों में मिलाने पर दो अधिक परमावधि के विकल्प प्रमाण ध्र बहार हुए । इन ध्रुवहारों को परस्पर गुणा करने से जो प्रमाण (संख्या) प्राप्त हो उससे परमाणु अर्थात् वर्ग को गुणा करने से कर्मवर्गणा प्राप्त होती है। कार्मणवर्गणा को इस संख्या से भाजित करने पर परमाणु अर्थात् बर्ग प्राप्त होता है। इस प्रकार वर्गगुणाकार, वर्गणा व वर्ग का प्रमाण कहा गया।
देवावधि के द्रव्य-विकल्प देसोहिअवरदवं धवहारेणवहिदे हये विदियं । तदियादिवियप्पेसु वि असंखवारोत्ति एस कमो ॥३६४॥ देसोहिमज्झभेदे सविस्ससोथचयतेजकम्मंग । तेजोभासमणाणं वगरणयं केवलं जत्थ ॥३६५।। पस्सदि ग्रोही तत्थ असंखेज्जानो हवंति दीउबही । वासारिण असंखेज्जा होति असंखेज्जगुरिगदकमा ॥३६६॥ तत्तो कम्महस्सिगिसमयपबद्ध विविस्ससोयचयं ।
धुवहारस्स विभज्ज सन्योही जाव लाव हवे ॥३६७।। १. धवल पु. १ पृ. ४४.४८ ।