Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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४६६/गो. सा. जीवकाण्ड
गाथा ३७०
शा-अवधिज्ञान में अवधि शब्द का प्रयोग किस लिए किया गया है ?
समाधान—इससे नोचे के सभी ज्ञान सावधि हैं और ऊपर का केवलज्ञान निरवधि है। इसका ज्ञान कराने के लिये अवधिज्ञान में अवधि शब्द का प्रयोग किया गया है।
शा-इस कथन का मनःपयंयज्ञान से व्यभिचार दोष पाता है ?
समाधान नहीं, क्योंकि मनःपर्ययज्ञान भी अवधिज्ञान से अल्प विषय वाला है, इसलिए विषय की अपेक्षा उसे अबधिज्ञान से नीचे स्वीकार किया है। फिर भी संयम के साथ रहने के कारण मन:पर्ययज्ञान में जो विशेषता आती है, उस विशेषता को दिखलाने के लिए मनःपर्ययज्ञान को अवधिज्ञान से नीचे न रखकर ऊपर रखा है इसलिए कोई दोष नहीं है।'
शङ्का-मर्यादा अर्थ में रूढ अवधि शब्द ज्ञान के अर्थ में कैसे रहता है ?
समाधान नहीं, क्योंकि जिस प्रकार असि से सहवरित पुरुष के लिए उपचार से असि कहने में कोई विरोध नहीं है, उसी प्रकार अवधि से सहचरित ज्ञान को प्रबंधि कहने में कोई विरोध नहीं है । मति-श्रु तज्ञान परोक्ष हैं इसलिए अवधि शब्द से उनका प्रहरण नहीं हो सकता, क्योंकि अवधिज्ञान प्रत्यक्ष है।
शङ्का-मतिज्ञान भी तो प्रत्यक्ष देखता है ?
समाधान नहीं, क्योंकि मतिज्ञान से वस्तु का प्रत्यक्ष उपलम्भ नहीं होता है। मतिज्ञान से बस्तु का एकदेश प्रत्यक्ष जाना जाता है । एकदेश सम्पूर्ण बस्तु नहीं हो सकता । जो भी वस्तु है वह भी मतिज्ञान के द्वारा प्रत्यक्षरूप से नहीं जानी जाती, क्योंकि वह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप परोक्ष मतिञान का विषय है । अतः यह सिद्ध हुआ कि मतिझान प्रत्यक्ष नहीं है।
शङ्खा–यदि ऐसा है तो अवधिज्ञान भी प्रत्यक्ष-परोक्षात्मकता को प्राप्त होता है, क्योंकि बस्तु त्रिकालगोचर अनन्त पर्यायों से उपचित है, किन्तु अवधि ज्ञान के प्रत्यक्ष द्वारा उस प्रकार की वस्तु के जानने की शक्ति का अभाव है ?
समाघान-नहीं, क्योंकि अवधिज्ञान में प्रत्यक्ष रूप से वर्तमान समस्त पर्यायों से विशिष्ट वस्तु का ज्ञान पाया जाता है तथा भूत और भावी असंख्यात पर्यायों से विशिष्ट वस्तु का ज्ञान देखा जाता है।
शङ्खा-ऐमा मानने पर भी अवधिज्ञान से पूर्ण वस्तु का ज्ञान नहीं होता, इसलिए अबधिज्ञान के प्रत्यक्ष परोक्षात्मकता प्राप्त होती है ।
समाधान---नहीं, क्योंकि व्यवहार के योग्य एवं द्रव्याथिक और पर्यायाथिक इन दोनों नयों के समूह हर वस्तू में अवधिज्ञान के प्रत्यक्षता पाई जाती है।
१. जयधवल पु. १ पृ. १७ व प. . ६ पृ. १३ । २. धवल पु. पृ. १२-१३। ३. घ. पु. ६ पृ. २६ ।