Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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२२४/गो.सा. जीवकाण्ड
गाथा १५७-११६
सामान्य मनुष्यराशि अर्थात् सूच्यंगुल के प्रथम व तृतीय वर्गमूलों से भाजित ज. श्रे. में से संख्यातप्रमाण मनुष्यपर्याप्त राशि घटाने पर भी अपर्याप्तमनुष्यों का प्रमाण असंख्यात प्राप्त होता है, अतः 'अपर्याप्तमनुष्य द्रव्यप्रमाण की अपेक्षा असंख्यात हैं। यहाँ नित्यपर्याप्तों को ग्रहण न करके लब्ध्यपर्याप्तकों को ग्रहण करना चाहिए। काल की अपेक्षा लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्य असंख्यातासंख्यात अवसपिणियों और उत्सपिणियों के द्वारा अपहत होते हैं। क्षेत्र की अपेक्षा ज. श्रे. के असंख्यातवेंभागप्रमाण लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्य हैं। उस ज. श्रे. के असंख्यातवें भागरूप घेणी का धायाम असंख्यात करोड़ योजन है।
सूच्यगल के तृतीय वर्गमूल से गुरिगत प्रथम वर्गमूल को मालाकारूप से स्थापित करके रूपाधिक लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्यों के द्वारा जगच्छ्रेणी अपहृत होती है।
शहा–ज. श्रे, के असंख्यातवें भागरूप श्रेणी का आयाम असंख्यात करोड़ योजन है। यहाँ पर श्रेणी के असंख्यातवें भाग को श्रेणी क्यो कहा गया है ?
समाधान–ज. श्रे. के असंख्यातवें भाग को भी श्रेणी कहते हैं, क्योंकि अवयवी के नाम की अवयव में प्रवृत्ति देखी जाती है। जैसे-ग्राम के एक भाग के दग्ध होने पर ग्राम जल गया, ऐसा कहा जाता है। अथवा, इस प्रकार का सम्बन्ध कर लेना चाहिए कि उस श्रेणी के प्रसंख्यातवें भाग का प्रायाम अर्थात लम्बाई असंख्यात करोड़ योजन है। "अपज्जत्तएहि रूबपक्खित्तएहि रूवा पक्खित्तएहि रूवं पक्खित्तएहि" इन तीनों भी स्थानों में किसी भी मन मे रूपिक याप्त मनुष्यराशि का प्रक्षेप करना चाहिए। पुनः लब्ध में से रूपाधिक पर्याप्त मनुष्यराशि को घटा देने पर लब्ध्यपस्तिक मनुष्यों का प्रमाण होता है। सूच्या ल के प्रथम वर्गमूल को तृतीय वर्गमूल से मुणित करके जो लब्ध आवे, उससे ज. थे. को भाजित करने में लब्धराशि में से एक कम कर देने पर सामान्य मनुष्यराशि का प्रमारण पाता है और इसमें से पर्याप्तक मनुष्यों का प्रमाण घटा देने पर लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्यों का प्रमारण प्राप्त होता है।
अल्पबहुत्व
अयोगकेवली मनुष्य सबसे स्तोक हैं. उनसे चारों (4-६-१०-११) गुणस्थानवी उपशामक संख्यातगुणे हैं। चारों (८-६-१०-१२) गुणस्थानवर्ती क्षपक, उपशामकों से संख्यातगुणे हैं। सयोगकेवली चारों क्षपकों से संख्यातगणे हैं। अप्रमत्तसंयत मनुष्य सयोगकेवलियों से संख्यातगुणे हैं। प्रमत्तसंयत मनुष्य अप्रमत्तसंयतों से संख्यातगुरगे हैं। प्रमत्तसंयतों से संयतासंयत मनुष्य संख्यातमुणे हैं। संयतासंयत मनुष्यों से सासादन सम्यग्दृष्टि मनुष्य संख्यातगुण हैं। सासादन सम्यग्दृष्टियों से सम्यग्मिथ्याष्टि मनुष्य संख्यातगुरगे हैं। सम्यग्मिथ्याष्टि मनुष्यों से असंयत
१. "मणुस अपज्जत्ता दन्वपमाणेण केवडिगा? असंखेज्जा ॥५॥" घ. पु. ३ पृ. २६२। २. प. पु. ३ पृ. २६२ । ३. "असंवेज्जासक्षेत्राहि प्रोसप्पिसा-उम्सप्पिणीहि अवहिरंति कालेण" ध, पु. ३ पृ. २६२ सूत्र ५१ । ४. "खेतेण सेटीए असंखेज्जदिभागो। तिस्स सेढीए आयामो असंखेज्जाम्रो जोयग-कोडीमो। मणुस-अपज्जत्तेहि रूया पश्यितेहि सेठिमबहिरदि अंगुल बग्गमूलं तदियवम्गमूलगुरिण देण ॥५२॥" प.पु. ३ पृ. २६२ । ५. ध.पु. ३ पृ. २६३-२६४ ।