Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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२८२ / गो. सा. जीवकाण्ड
गाथा २०६२०८
विरलित राशि के प्रत्येक प्रति एक के प्रति घनलोक को देयरूप से देकर परस्पर गुरिणत ( असंख्यात लोक प्रमाण ) करने से जो राशि उत्पन्न हो उससे बादर वनस्पति अप्रतिष्ठित प्रत्येक की जोवराणि को गुणित करने पर बादरनिगोद प्रतिष्टित जीवराशि का प्रमाण प्राप्त हो जाता है । "
तसरासिपुढविश्रादी - चक्क पत्तेय हो रण- संसारी ।
साहारा जीवाणं परिमार होदि जिरादिट्ठ ॥ २०६ ॥
गाथार्थ – सराणि पृथिवी आदि चार स्थावरकाय जीव और प्रत्येक वनस्पति इन सबको संसारी जीवराशि में से कम करने पर साधारण जीवों का प्रमाण प्राप्त होता है, ऐसा जिनदेव ने कहा है ||२०६ ||
विशेषार्थ- प्रतरांगुल के प्रसंख्यातवें भाग से भाजित जगत्प्रतर प्रमाण सराणि (गा. २११), असंख्यात लोक प्रमाण पृथिवीकाय, जलकाय, अग्निकाय, वायुकाय व प्रत्येक वनस्पति (गा. २०४ २०५ ) इन सब राशियों की संख्या को सर्व संसारी जीवराशि के प्रभार में से घटाने पर जो शेष रहे वह साधारण वनस्पतिकायिक जीवों की अर्थात् निगोद जीवों की संख्या है। यह संख्या अनन्तानन्त है जो सिद्ध जीवों के प्रमाण से अनन्तगुणी है ( गा. १२६) ।
सगसग-प्रसंखभागो बादरकायारण होदि परिमाणं । पडिभागो पुव्वरिगद्दिट्ठो ॥ २०७ ॥
सेसा
सुहुमपमाणं
गाथार्थ श्रमनी - श्रपनी राशि का असंख्यातवाँ भाग बादरकाय जीवों का प्रभार है और शेष बहुभाग प्रमाण सूक्ष्मकाय जीव हैं । प्रतिभाग का प्रमाण पूर्व (गा. २०४ ) में कहा जाचका है ||२०७ ॥
विशेषार्थ - गाथा २०४ में 'पडिभागोऽसंखलोगो' इन शब्दों द्वारा प्रतिभाग का प्रमाण संख्यात लोक कहा गया है। अपनी-अपनी राशि को असंख्यात लोक से विभाजित करने पर जो लब्ध प्राप्त हो उतने बादरकाय जीवों का प्रमाण है और शेष बहुभाग सूक्ष्मकाय जीवों का प्रमाण है जो बादर जीवों के प्रमाण से असंख्यातगुरणा है । पृथिवीकाय जीवराशि में असंख्यात लोक का भाग देने पर जो एक भाग प्रमाण लब्ध प्राप्त हो उतने बादर पृथिवीकाय जीव हैं । पृथिवीकाय राशि में से बादर जीवों का प्रमाण घटा देने पर शेष बहुभाग सूक्ष्म पृथिवीकाय जीवों का प्रमाण है । इसी प्रकार जलकाय आदि राशियों में चादर व सूक्ष्म जीवों का प्रमाण प्राप्त कर लेना चाहिए । बादर पृथिवीकायिक जीव स्लोक हैं, उनसे असंख्यातगुणे सूक्ष्म पृथिवीकायिक जीव हैं । गुणाकार असंख्यात लोक है।
सुमेसु संखभागं संखा भागा अपुण्णना इदरा । जस्ति पुण्णद्वादो पुष्पद्धा संखगुरिणबकमा ॥२०८ ||
१. भबल पु. ३ पू. ३४६-३४७
२. धवल पु.. ३ पृ. ३६६ २