Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ३४०-३४१
ज्ञानमार्गणा/४२१
विशेषार्थ- प्रतिपत्ति नामक श्रुतज्ञान के ऊपर एक अक्षर प्रमाण श्रुतज्ञान के बढ़ने पर प्रतिपत्ति-समास नामक धतज्ञान उत्पन्न होता है। इस प्रकार प्रतिपत्ति समास श्रतज्ञान ही बढता हुआ तब तक चला जाता है, जब तक एक अक्षर से कम अनुयोगद्वार नामक श्रुतज्ञान प्राप्त होता है ।' पुनः इसमें एक अक्षर की वृद्धि होने पर अनुयोगद्वार श्रुतज्ञान होता है ।
शंका-अनुयोगद्वार यह किसकी संज्ञा है ?
समाधान-प्राभूत के जितने अधिकार होते हैं, उनमें से एक-एक अधिकार को प्राभृतप्राभृत संज्ञा है और प्राभूतप्राभुत जितने अधिकार होते हैं, उनमें से एक-एक अधिकार की अनुयोगद्वार संज्ञा है।
चौदह मार्गणानों से प्रतिबद्ध जितने पदों के द्वारा जो अर्थ जाना जाता है, उतने पदों की और उनसे उत्पन्न हुए श्रुतज्ञान की 'अनुयोग' यह संज्ञा है ।
प्राभुतप्रामृत श्रुतज्ञान चोइसमगरगसंजुद-परिणयोगादुवरि वढिदे वण्णे । चउरादीनरिणयोगे दुगवारं पाहुडं होदि ॥३४०॥ अहियारो पाहुयं एयट्ठो पाहुडस्स अहियारो ।
पाहुउपाहुडणामं होदित्ति जिणेहिं गिद्दिट्ठ ॥३४१॥ गाथार्थ-चौदह मार्गणाओं का कथन करने वाले अनुयोग से उपर पूर्वोक्त क्रमअनुसार एक-एक अक्षर की वृद्धि होते-होते जब चतुरादि अनुयोगों की वृद्धि हो जाय तब प्राभृतप्राभूत श्रुतज्ञान होता है ।।२४०।। प्राभूत और अधिकार ये दोनों एक अर्थ के बाचक हैं। अत एव प्राभूत के अधिकार की प्राभृतप्राभृत संज्ञा है, ऐसा जिन (श्रुतकेवली) ने कहा है ।।२४१।।
विशेषार्थ-अनुयोग श्रुतज्ञान के ऊपर एक अक्षर प्रमाण श्रुतज्ञान के बढ़ने पर अनुयोग समास श्रुतज्ञान होता है। इस प्रकार अनुयोग समास नामक श्रुतज्ञान एक-एक अक्षर की उत्तर बद्धि से बनता हा तब तक जाता है जब तक कि एक अक्षर से कम प्राभतप्राभत नामक श्रतज्ञान प्राप्त होता है। उसके ऊपर एक अक्षर प्रमाण तज्ञान के बढ़ने पर प्राभतप्राभत नामक थतज्ञान उत्पन्न होता है, संख्यात अनुयोगद्वार रूप श्रुत ज्ञानों के द्वारा एक प्राभूतप्राभुत नामक थुतज्ञान उत्पन्न होता है।
शङ्का प्राभृतप्राभृन यह क्या है ? समाधान-संख्यात अनुयोग द्वारों को ग्रहण कर एक प्राभृतप्राभृत श्रुतज्ञान होता है ।
वस्तु नामक श्रुतज्ञान के एक अधिकार को प्राभूत और अधिकार के अधिकार को प्राभृतप्राभूत कहते हैं।
१. घवल पु. ६ पृ. २४ । २. धवल पु. १३ पृ. २६६-२७० । ३. बबल पु. ६ पृ. २४ । ४. घवल पु. ६ पृ. २४ । ५. घवल पु. १३ पृ. २७० ।