Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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४४६/गो. सा. जीवकाण्ड
गाथा ३६१.३६६
बारह. अंग दृष्टिवाद के भेद और उनके पदों का प्रमाण चंदरविजंबुदीक्यदीवसमुद्दयवियाहपण्णत्ती परियम्म पंचविहं सुत्तं पढ़मारिणजोगमदो ॥३६१॥ पुथ्वं जलथलमाया प्रागासयरूवगमिमा पंच । भेदा ४ चूलियार तेसु पमाणं इण कमसी ॥३६२॥ गलनम मनगंगोरम मरगत जगातनोननं जजलक्खा । मननन धममननोनननामं रनधजधराननजलाची ॥३६३॥ पाजकनासेनाननमेवारिग पदाणि होति परिकम्मे । कानवधिवाचनाननमेसो पुरण चूलियाजोगो ॥३६४॥ पण्णदाल पणतीस तीस पण्णास पण तेरस । रगउदो दुदाल पुब्बे पणवण्णा तेरससयाई ॥३६॥ छस्सय पण्णासाई चउसयपण्णास छसयपणुधीसा ।
बिहि लगखेहि दु गुरिणया पंचम रूऊरण छज्जुदा छ? ।।३६६॥ गाथार्थ-बारहवें दृष्टिवाद अंग के पांच भेद हैं-परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्वगत और चलिका। परिकर्म के पाँच भेद हैं—चन्द्रप्रजप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, द्वीप-समुद्र-प्रज्ञप्ति, व्याख्याप्रज्ञप्ति। चूलिका के पांच भेद हैं-जलगता, स्थलगता, मायागता, आकाशगता, रूपगता । इनके पदों का प्रमाण क्रम से चन्द्रप्रज्ञप्ति में छत्तीस लाख पाँच हजार, सूर्यप्रज्ञप्ति में पांच लाख तीन हजार, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में तीन लाख पच्चीस हजार, द्वीप-समुद्र-प्रज्ञप्ति में बावन लाख छत्तीस हजार, व्याख्याप्रज्ञप्ति में चौरासी लाख छत्तीस हजार पद हैं। सत्र में अठासी लाख पद हैं। प्रथमानयोग में पाँच हजार पद हैं। चौदह पूर्व में पचानवे करोड़ पचास लाख पद हैं। पांचों चूलिकामों में से प्रत्येक में दो करोड़ नौ लाख नवासी हजार दो सौ पद हैं। पाँचों परिकर्म के पदों का जोड़ एक करोड़ इक्यासी लाख पाँच हजार है। पांचों चूलिका के पदों का जोड़ दस करोड़ उनचास लाख छयालीस हजार है । ५०, ४८, ३५, ३०, ५०, ५०, १३००,६०, ४२, ५५, १३००, ६५०, ४५० तथा ६२५; इन चौदह संख्याओं में से प्रत्येक को दो-दो लाख से गुरिणत करें। विशेष यह है कि प्राप्त १४ गुणनफलों में से पंचम गुणनफल में एक कम करना चाहिए तथा छठे गुणनफल में ६ जोड़ने चाहिए। इस प्रकार अब प्राप्त अभिनव चौदह ही संख्याएं चौदहपूर्वो में से प्रत्येक पूर्व के पदों की संख्यारूप है। [सार यह है कि चौदह पूर्त में क्रम से एक करोड़, छयानवे लाग्य, सत्तर लाख, साठ लाख, एक कम एक करोड़, एक करोड़ छह, छब्बीस करोड़, एक करोड़ अस्सी लाख, चौरासी लाख, एक करोड़ दस लाख, छब्बीस करोड़, तेरह करोड़, नौ करोड़ और चौदहवें पूर्व में बारह करोड़ पचास लाख पद है] ॥३६१-३६६।।
विशेषार्थ- 'दृष्टिवाद अंग' यह गोण्य नाम है, क्योंकि इसमें अनेक दृष्टियों का वर्णन है। यह अक्षर, पद, संघात, प्रतिपत्ति, अनुयोग आदि की अपेक्षा संध्यात रूप है और अर्थ की अपेक्षा