Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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४५६/गो. सा. जीवकाण्ड
गाथा ३६७-३६८
निदोषता का ज्ञान कराकर वन्दना के भेद और उनके फलों का प्ररूपगा करता है ।
देवसिक, रात्रिक, पाक्षिक, चातुर्मासिक, सांवत्सरिक, ऐपिथिक और प्रौत्तमस्थानिक ; इसप्रकार प्रतिक्रमण सात प्रकार का है। सर्वातिचारिक और निविधाहारत्यागिक नाम के प्रतिक्रमण उत्तम स्थान प्रतिक्रमण में अन्तर्भूत होते हैं। २८ मूलगुणों के अतिचार विषयक समस्त प्रतिक्रमण ईपिथ प्रतिक्रमण में अन्तर्भूत होते हैं, क्योंकि ईपिथ प्रतिक्रमण अवगत अतिचारों को विषय करता है। इस कारण प्रतिक्रमण ही होते हैं।
शङ्का-प्रत्याख्यान तथा प्रतित्रामण में क्या भेद है?
समाधान—द्रव्य, क्षेत्र, काल तथा भाव के निमित्त से अपने शरीर में लगे हुए दोषों का त्याग करना प्रत्याख्यान है। प्रत्याख्यान से अप्रत्याख्यान को प्राप्त होकर पुनः प्रत्याख्यान को प्राप्त होना, प्रतिक्रमण है।
[अभिप्राय यह है कि मोक्ष के इच्छुक ब्रती द्वारा रत्नत्रय के विरोधी नामादिक का मन, वचन और काय से बुद्धिपूर्वक त्याग करना प्रत्याख्यान है। त्याग करने [प्रत्याख्यान करने] के अनन्तर ग्रहण किए हुए बतों में लगे हुए दोषों का गहीं और निन्दा पूर्वक परिमार्जन करना प्रतिक्रमण है। यही इन दोनों में भेद है।]
शङ्का-यदि प्रतिक्रमण का उक्त लक्षण है तो औतमस्थानिक नामक प्रतिक्रमण नहीं हो सकता है, क्योंकि उसमें प्रतिक्रमण का लक्षण नहीं पाया जाता है।
समाधान -- नहीं, क्योंकि जो स्वयं प्रतिक्रमण न होकर प्रतिक्रमण के समान होता है वह भी प्रतिक्रमण कहलाता है। इस प्रकार के उपचार से उत्तमस्थानिक में भी प्रतिक्रमणपना स्वीकार । किया है।
शङ्खा-ौत्तमस्थानिक (उत्तमस्थानिक) में प्रतिक्रमणपने के उपचार का क्या निमित्त है ? समाधान-इसमें प्रत्याख्यान सामान्य ही प्रतिक्रमणपने के उपचार का निमित्त है ?
शङ्का उत्तम स्थान के निमित्त से किए गए प्रत्याख्यान में प्रतिक्रमण का उपचार किस प्रयोजन से होता है ?
समाधान--मैंने पांच महाव्रतों का ग्रहण करते समय ही शरीर और कषाय के साथ आहार का त्याग कर दिया था, अन्यथा शुद्धनय के विषयभूत ५ महायतों का ग्रहण नहीं बन सकता है। ऐसा होते दृए भी मैंने शक्तिहीन होने के कारण ५ महाव्रतों का भंग करके इतने काल तक उस पाहार का सेवन किया। इस प्रकार अपनी गहीं करके उत्तम स्थान के काल में प्रतिक्रमण की प्रवृत्ति पाई जाती है। इसका ज्ञान कराने के लिए प्रोत्तमस्थानिक प्रत्याख्यान में प्रतिक्रमण का उपचार किया गया है । दस प्रकार प्रतिक्रमण प्रकीर्णक इन प्रतिक्रमणों के लक्षण और भेदों का वर्णन करता है ।
१-२. जयघबल पुस्तक १५.११३ प्रकरण ८८-८६ |