Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ३६१-३६६
ज्ञानमार्गणा/४४७
अनन्त रूप है।' क्योंकि इस दृष्टिवाद के प्रमेय अनन्त हैं । इसमें तदुभयवक्तव्यता (स्वसमय और पर समय दोनों बक्तव्यता) है।
इस दृष्टिवाद अंग के पाँच अधिकार हैं-परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्वगत और चूलिका। उनमें से परिकर्म के पांच भेद हैं--चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, द्वीपसागरप्रज्ञप्ति और व्याख्याप्रज्ञप्ति ।
चन्नप्राप्ति नामका परिकर्म छत्तीस लाख पाँच हजार पदों के द्वारा चन्द्रमा की आयु, परिवार, ऋद्धि. गति और बिम्ब की ऊँचाई आदि का वर्णन करता है। सूर्यप्रज्ञप्ति नामका परिकर्म पाँच लाख तीन हजार पदों के द्वारा सूर्य की आयु, भोग, उपभोग, परिवार, ऋद्धि, गति, बिम्ब की ऊंचाई, दिन की हानिवृद्धि, किरणों का प्रमाण और प्रकाश आदि का वर्णन करता है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति नामका परिकम तीन लाख पच्चीस हजार पदों के द्वारा जम्बूद्वीपस्थ भोगभूमि और कर्मभूमि
हए नाना प्रकार के मनष्य तथा दूसरे तिर्यंच ग्रादि का और पर्वत, द्रहनदी, बेदिका, वर्ष, आबाम, अकृत्रिम जिनालय आदि का वर्णन करता है। द्वीपसागरप्रज्ञप्ति नामका परिकर्म बावन लाख छत्तीस हजार पदों के द्वारा उद्धारपल्य से द्वीप और समुद्रों के प्रमाण का तथा द्वीपसागर के अन्तर्भूत नाना प्रकार के दुसरे पदार्थों का वर्णन करता है। व्याख्याप्रजाप्ति नामका परिकर्म चौरासी लाम्ख छत्तीस हजार पदों के द्वारा रूपी अजीवद्रव्य प्रर्थात् पुदगल, अरूषी अजीबद्रव्य अर्थात् धर्म, अधर्म, आकाश और काल, भव्यसिद्ध और अभव्यसिद्ध जीव इन सबका वर्णन करता है।
दृष्टिवाद अंग का सूत्र नाम का अर्थाधिकार अठासी लाख पदों के द्वारा जीव प्रबन्धक ही है, अलेपक ही है, अकर्ता ही है, अभोक्ता भी है, निर्गुण ही है, अणुप्रमाण ही है, जीव नास्तिस्वरूप ही है, जीव अस्तिस्वरूप ही है, पृथिवी आदिक पाँच भूतों के समुदायरूप से जीव उत्पन्न होता है, चेतना रहित है, ज्ञान के बिना भी सचेतन है, नित्य ही है, अनित्य ही है, इत्यादि रूप से क्रियावादी, अत्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयबादियों के तीन सौ वेसठ मतों का पूर्वपक्षरूप से वर्णन करता है। यह राशिकवाद, नियतिवाद, विज्ञानवाद, शब्दवाद, प्रधानवाद, द्रध्यवाद और पुरुषवाद का भी वर्णन करता है । कहा भी है
अट्ठासी-पहियारेसु 'घउण्हमहियारणमत्थरिणद्देसो । पढमो प्रबंधयाणं विदियो तेरासियाण बोद्धन्वो ॥३६॥
तवियो य रिणयइ-पक्खे हबइ चउत्थो ससमम्मि । ..-इस सुत्र नामक अधिकार के अठासी अधिकारों में से चार अधिकारों का अर्थनिर्देश मिलता है। उनमें पहला अधिकार प्रबन्धकों का दूसग त्रैराशिकवादियों का, तीसरा नियतिवाद का समझना चाहिए तथा चौथा अधिकार स्वसमय का प्ररूपक है ।
दृष्टिवाद अंग का प्रथमानुयोग अर्थाधिकार पाँच हजार पदों के द्वारा पुराणों का वर्णन करता है। कहा भी है -
१. प.पु. १ पृ. १०६ । २. "अस्थादो प्रणत, पमेयारणंतियादो" [धवन पू. ६ पृ. २१२] । ३. पवल पु. १ पृ.
१०१
४. धवल पु.१.११२ ।