Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
View full book text
________________
गापा ३५६-३६०
ज्ञानमार्गणा/४४५
समाधान-तीर्थङ्कर, गणधर, ऋषि, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, देव और विद्याधरों की ऋद्धियाँ पुण्य के फल हैं।
पाप के फल का वर्णन करने वाली कथा को निर्वेदनी कथा कहते हैं। शङ्का--पाप के फल कौनसे हैं ?
समाधान-नरक, तिर्यंच और कुमानुष की योनियों में जन्म, जरा, मरण, व्याधि, वेदना और दारिद्रय आदि की प्राप्ति पाप के फल हैं।
अथवा, संसार, शरीर और भोगों में वैराग्य को उत्पन्न करने वाली कथा को निवेदनी कथा कहते हैं बाहा भी है
आक्षेपणी तत्वविधानभूतां विक्षेपणी तत्त्वदिगन्तशुद्धिम् ।
शंवेनिगी धर्मजागा निदि वार मान विरागाम् ॥'
-तत्त्वों का निरूपण करने वाली आक्षेपणी कथा है। तत्व से दिशान्तर को प्राप्त हुई दृष्टियों का शोधन करने वालो अर्थात् परमत की एकान्तदृष्टियों का शोधन करके स्वसमय की स्थापना करने वाली विक्षेपणी कथा है। विस्तार से धर्म के फल का वर्णन करने वाली संवेगिनी कथा है और वैराग्य उत्पन्न करने बाली निर्वेदिनी कथा है।
इन कथानों का प्रतिपादन करते समय जो जिनवचन को नहीं जानता है अर्थात् जिसका जिनवचन में प्रवेश नहीं है, ऐसे पुरुष को विक्षेपणी कथा का उपदेश नहीं करना चाहिए क्योंकि जिसने स्वसमय के रहस्य को नहीं जाना है और परसमय की प्रतिपादन करने वाली कथानों के सुनने से व्याकुलित चित्त होकर वह मिथ्यात्व को स्वीकार न कर लेवे, इसलिए स्वसमय के रहस्य को नहीं जानने वाले पुरुष को विक्षेपणी कथा का उपदेश न देकर शेष तीन कथाओं का उपदेश देना चाहिए। उक्त तीन कथानों द्वारा जिसने स्वसमय को भलीभांति समझलिया है, जो पुण्य और पाप के स्वरूप को जानता है, जिस तरह मज्जा अर्थात हड़ियों के मध्य में रहने वाला रस हड्डी से संसक्त होकर ही शरीर में रहता है, उसी तरह जो जिनशासन में अनुरक्त है, जिनवचन में जिसको किसी प्रकार की विचिकित्सा नहीं रही है, जो भोग और रति से विरक्त है और जो तप, शील पौर नियम से युक्त है, ऐसे पुरुष को ही पश्चात् विक्षेपणी कथा का उपदेश देना चाहिए। प्ररूपण करके उत्तम रूप से ज्ञान कराने वाले के लिए, यह अकथा भी तब कथारूप हो जाती है। इसलिए योग्य पुरुष को प्राप्त करके ही साधु की कथा का उपदेश देना चाहिए। यह प्रश्नव्याकरण नाम का अंग प्रश्न के अनुसार स्त, नष्ट, मुष्टि, चिन्ता, लाभ, अलाभ, सुख, दुःख, जीवित, मरण, जय, पराजय, नाम, द्रव्य, आयु और संख्या का भी प्ररूपण करता है ।
विपाकसूत्र नाम का अंग एक करोड़ चौरासी लाख पदों के द्वारा पुण्य और पापरूप कर्मों के फल का वर्णन करता है।
ग्यारह अंगों के कुल पदों का जोड़ चार करोड़ पन्द्रह लाख दो हजार पद है । १. प. पु. १ पृ. १०६ गा. ६५ ।