Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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४३८/गो. सा. जीयकाण्ड
गाथा ३५२-३५४
गरछकदी मूलजुवा उत्तरगच्छादिएहि संगुणिदा। छहि भजिवे जं लद्धं संकलगाए हये कलणा ॥१६॥'
-गच्छ का वर्ग करके उसमें मूल को जोड़ दें, पुनः प्रादि-उत्तर सहित गच्छ से गुणित करके उसमें छह का भाग देने पर जो लब्ध प्राप्त हो वह संकलना की कलना होती है ।।१६।।
इस गाथा द्वारा पूर्वोक्त त्रिसंयोगी भंग लाने चाहिए। यहाँ गच्छ बासठ है। उसका वर्ग इतना होता है--६२४६२-३८४४ । पुनः इसमें मूल वासठ को मिला देने पर इतना होता है-- ३८४४+६२ =३६०६ । पुनः इसे प्रादि-उत्तर सहित गच्छ से गुणित करने पर इतना होता है३९०६४ (१+१+ ६२) = २४६६८४ । पुनः इसमें छह का भाग देने पर पूर्वलब्ध त्रिसंयोगी भंग इतने होते हैं-२४६६८४:६-४१६६४ ।
इसका कारण यह है कि चौंसठ अक्षरों को क्रम से स्थापित कर पूनः प्रकार के विवक्षित होने पर प्रथम और द्वितीय अक्ष को ध्रुव करके तोसरा अक्ष आ३कार आदि बासठ अक्षरों पर जब तक संवार करता है तब तक बासठ विसंयोगी भंग प्राप्त होते हैं ६२ । पुनः प्रथम अक्ष को प्रकार पर ही स्थापित कर शेष दो प्रक्षों को प्रा३कार और इकार पर स्थापित कर पुनः इनमें से प्रारम्भ के दो पक्षों को ध्र व करके तृतीय अक्ष के कम से संचार करने पर इकसठ त्रिसंयोगी भंग प्राप्त होते हैं ६.१ !
पुनः प्रकार अक्ष को धब करके शेष दो पक्षों को इकार और ईकार पर स्थापित कर तृतीय प्रक्ष के क्रम से संचार करने पर साठ त्रिसंयोगी भंग प्राप्त होते हैं ६० । इस प्रकार प्रकार अक्ष को ध्र व करके शेष दो अक्ष क्रम से संचार करते हुए जब तक सब अक्षरों के अन्त को प्राप्त होते है तब तक प्रकार के बासठ संख्या के संकलन मात्र (१.४६३ -- १६५३) = त्रिसंयोगी भंग उत्पन्न होते हैं।
पुनः आकार के विवक्षित होने पर शेष दो अक्ष क्रम से संचार करते हुए जब तक सब अक्षरों के अन्त को प्राप्त होते हैं तब तक इकसठ संख्या के संकलन मात्र (३.४६२ = १८६१) आकार के त्रिसंयोगी भंग उत्पन्न होते हैं ।
पुनः प्रा३कार के विवक्षित होने पर साठ के संकलनमात्र (--x.3 = १९५३) मा३कार के त्रिसयोगी भंग उत्पन्न होते हैं ।
पूनः इकार के विवक्षित होने पर उनसठ के संकलन मात्र (५.४६० = १७७०) इकार के त्रिसंयोगी भंग उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार ईकार प्रादि अक्षरों में प्रत्येक प्रत्येक के यथाक्रम से अट्ठावन, सत्तावन, छप्पन आदि संख्याओं के संकलनमात्र भंग उत्पन्न होते हैं । इस प्रकार उत्पन्न हुई सब संकलनाओं को मिलाने पर चौसठ अक्षरों के सब त्रिसंयोगी भंग उत्पन्न होते हैं । उनका प्रमाण यह है--४१६६४ ।
१. धवल पृ. १३ पृ. २५६ ।