Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ३५२-३५४
जानमार्गणा/४३१
१७ १८
३१ ३२ ४६ ४५
०३६ ३५ ३४ ३३ २६ ३५ २६ २७ २६ १६ ४. १ ४२ ४३ ४ ४५ ४६ ४७ ४८
॥ १ ४२ ३२ ३१ ३० २६ २८ २७ २६ २५ २४ २३ २२ २१ २० १८ १८ १७ ४६ ५. ५१ ५२ ५३ ५४ ५५ ५६ ५७ ५८ ५१ ६० ६१ ६२ ६३ ६४
१६ १५ १४ १३ १२ ११ १० १ ८ ५ ६ ५ ४ ३ २ १ इनको स्थापित कर अन्तिम चौंसठ में एक का भाग देने पर (६४) चौंसठ सम्पातफल (यानी एकसंयोगी भंग) लब्ध होता है।'
शङ्का-सम्पातफल किसे कहते हैं ?
समाधान-एकसंयोग भंग का नाम सम्पात है और उसके फल को सम्पातफल कहते हैं। पुनः श्रेसठ बटे दो (६) से सम्पातफल को गुरिणत करने से चौंसठ अक्षरों के द्विसंयोग भंग (२३४६४)२०१६ होते हैं। यथा-प्रकार के विवक्षित होने पर जब तक शेष प्रेसठ (६३)अक्षरों पर क्रम से अक्ष का संचार होता है तब तक सठ भंग प्राप्त होते हैं ६३ । पुनः प्राकार के विवक्षित होने पर प्रा३कार आदि बासठ (६२) अक्षरों पर क्रम से जब तक अक्ष का संचार होता है तब तक बासठ (६२)भंग प्राप्त होते हैं ६२ । पुनः प्रा३कार के विवक्षित होने पर इकार आदि इकसठ अक्षरों पर क्रम से अक्ष का संचार होने पर इकसठ (६१) द्विसंयोगी भंग प्राप्त होते हैं ६१। पुनः इकार के विवक्षित होने पर ईकार आदि साठ अक्षरों पर क्रम से जब तक अक्ष का संचार होता है तब तक इकार के द्विसंयोग से साठ भंग (६०) प्राप्त होते हैं ६० । पुनः ईकार आदि उनसठ अक्षरों के द्विसंयोगी भंग क्रमसे उत्पन्न कराने चाहिए ५६ । इस प्रकार उत्पन्न हुए द्विसंयोगी भंगों को एक साथ मिलाने पर दो हजार सोलह मात्र भंग उत्पन्न होते हैं । अथवा
संकलणरासिमिच्छे बोरासि थावयाहि रूवहियं ।
तत्तो एगदरद्ध एगदरगुणं हवे मरिणवं ॥१५॥ -~-यदि संकलनराशि का लाना अभीष्ट हो तो एकराशि वह जिसकी कि संकलन राशि अभीष्ट है तथा दूसरी राशि उससे एक अंक अधिक, इस प्रकार दो राशियों को स्थापित करें। पश्चात् उनमें से किसी एक राशि के अर्धभाग को दूसरी राशि से गुणित करने पर गणित अर्थात् विवक्षित राशि के संकलन का प्रमाण होता है ।।१५।।
इस गाथा के द्वारा एक को ग्रादि लेकर उत्तरोत्तर एक-एक अधिक तिरेसठ गच्छ की संकलना के ले पाने पर चौंसठ अक्षरों के द्विसंयोग भंग दो हजार मोलह होते हैं (६x६४ =
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१. धवल पु.१३ पृ. २५४.२५५ । ३. श्रवल पृ. १३ पृ. २५५-२५६ । ४. धवल पु.१६ पृ. २५६ । २. कारण देखो गो क.गाथा ७६९ की टीका, पू. ०६१ सम्पादक-रतनचन्द मुख्तार ।