Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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४३२/गो. सा. जीवकाण्ड
गाथा ३५२-२५४
२०१६) अब चौंसठ अक्षरों के त्रिसंयोग भंगों का कथन करने पर पूर्व में उत्पन्न हुए २०१६ द्विसंयोगी भूगों को बासठ बटा तीन (३२) से गुरिंगत करने पर त्रिसंयोगी भंग (२०१६x६२) ४१६६४ होते हैं। व तज्ञान के एकसंयोगी, द्विसंयोगी, त्रिसंयोगी आदि चौंसठ संघोगी तक के कुल भंगों का योग १ कम एकट्टीप्रमाण होता है जिसका विवरण इस प्रकार है
--- श्रुतमान के ६४ प्रक्षरों के एक संयोगी, द्विसंयोगी आदि भंग -
शकसंयोगी मंग
:-=६४
विसंयोगी भंग
६४.६३.६२
त्रिसंयोगी मंग
चतुःसंयोगी मंग
पंचसंयोगी मंग
----=७६२४५१२
६४.६३.६२.६१.६०.५६
---=७४६७४३६८
पसंयोगो मंग
सप्तसंयोगी भम
६४,६३,६२.६१.६०.५६.५५
----६२१२१६१९२ १. २. ३. ४. ५. ६. ७
अष्टसंयोमी भंग
६४.६३.६२.६१-६०.५६.५८,५७
-=४४२६१६५३६८
६४.६३.६२.६६.६७.५६.५८.५७.५६
--- =२७५४०१८४५१२
नवसंयोगी मंग
बससंयोगी मंत्र
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६४.६.३.६२.६१.६०.५६.५८.५७.५६.५१ -- - - - -
-- १. २. ३. ४. ५. ६. ७. E......
१५१४७३२१४८१६