Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
View full book text
________________
४२२/गो. सा. जीवकाण्ड
गाथा ३४२-३४३
प्रामत का स्वरूप दुगवारपाराशर उरि रहाणे कमेरा सर नीले ।
दुगवारपाहुडे संउड्ढे खलु होदि पाहुउयं ॥३४२॥ गाथार्थ--प्राभूतप्राभृत ज्ञान के ऊपर क्रम से एक-एक वृद्धि होते-होते जब चौबीस प्राभूतप्राभूत की वृद्धि होजाय तब एक प्राभृत श्रुतज्ञान होता है ॥३४२।।
विशेषार्थ-एक वस्तु में २० प्राभूत होते हैं और एक प्राभृत में २४ प्राभृतप्राभृत होते हैं । अर्थात् एक वस्तु में बीस अधिकार होते हैं और प्रत्येक अधिकार में चौबीस-चौबीस अवान्तर अधिकार होते हैं।
प्राभूतप्राभूत श्रुतज्ञान के ऊपर एक अक्षर प्रमाण श्रुतज्ञान के बढ़ने पर प्राभूतप्राभूत समास श्रु तज्ञान उत्पन्न होता है। उसके ऊपर एक अक्षर आदि की वृद्धि के क्रम से प्राभूतप्राभूत समास तब तक बढ़ता हुअा जाता है जब तक एक अक्षर कम प्राभृत नामक श्रुतज्ञान प्राप्त होता है। उसके ऊपर एक अक्षर प्रमाण श्रु तज्ञान के बढ़ने पर प्राभृत नामक अ तज्ञान उत्पन्न होता है।' संख्यात (२४) प्राभृतप्राभृतों को ग्रहण कर एक प्राभृतश्रुतज्ञान होता है, यह उक्त कथन का तात्पर्य है।
वस्तु श्रुतज्ञान वीसं-वीसं पाहुपहियारे एक्कवत्थुअहियारो। एषकेषकवरणउड्ढी कमेण सम्वत्थ गायया ॥३४३॥
गाथार्थ –बीस-बीस प्राभृतअधिकारों का एक बस्तु अधिकार होता है। सर्वत्र क्रम से एकएक अक्षर की वृद्धि होती है ।।३४३।।
विशेषार्थ-प्राभृत श्र तज्ञान के ऊपर एक अक्षर के बढ़ने पर प्राभृत समास नामक शुतज्ञान उत्पन्न होता है। इस प्रकार एक-एक अक्षर की वृद्धि के क्रमसे प्राभृत समास नामक थ तज्ञान तव तक बढ़ता हुअा जाता है जब तक कि एक अक्षर से कम बीसवाँ प्रामृत प्राप्त होता है। इस पर एक अक्षर की वृद्धि होने पर बीसौं प्राभूत हो जाता है अर्थात् वस्तुनामक शुतज्ञान उत्पन्न होता है।
एक्केक्काम्हि य वत्यू वीसं वीसं च पाहुडा भणिवा ।
विसम-समा हि य वत्थू सव्धे पुण पाहुडेहि समा ॥८६॥ --एका-एक वस्तु में बीस-बीस प्राभूत कहे गये हैं। पूर्वो में वस्तु सम व विषम है किन्तु वे सब वस्तुएँ प्रामृत को अपेक्षा सम हैं।
१. घवल पु. ६ पृ. २४-२५ ।
२. धवल पु. १३ पृ. २७० ।
३. धवल पु. ६ पृ. २५ ।
४. धवल पु..