Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ३२६-३३१
ज्ञानभारा/४०६
वृद्धि को मिलाने पर संख्यातगुणवृद्धि का प्रथम स्थान होता है। यह स्थान ग्रधस्तन उर्व स्थानान्तरों की वृद्धि से प्रनन्तगुण वृद्धि वाला होता है, चतुरंक स्थानान्तरों की वृद्धि से असंख्यातगुण वृद्धि वाला, पंचांक स्थानान्तरों की वृद्धि से प्रसंख्यातगुणवृद्धि वाला होता है ।" उपरिम भ्रष्टा के अधस्तन उर्वक स्थानान्तरों से अनन्तगुरणा, प्रथम षट् स्थान में उपरिम प्रथम सप्तांक से स्तन चतुरंक स्थानान्तरों से असंख्यात गुणा तथा द्वितीय असंख्यातगुण वृद्धि से अधस्तन संख्यातभाग वृद्धि स्थानान्तरों से संख्यातगुणा, संख्यातभाग हीन, संख्यातगुणा हीन अथवा प्रसंख्यातगुणा होन है ।
असंख्यात गुणवृद्धि प्रसंख्यात लोक गुणाकार से वृद्धिगत है ।। २१२ ॥ काण्डकप्रमाण छह अंकों के हो जाने पर यथाविधि वृद्धि को प्राप्त उपरि षडंक के विषय (स्थान) में स्थित अन्तिम उक को असंख्यात लोकों से गुणित करने पर असंख्यात गुणवृद्धि उत्पन्न होती है। उर्वक को प्रतिराणि करके उसमें उसे (अर्थात् वृद्धि को ) मिलाने पर असंख्यातगुरण वृद्धिस्थान होता है। असंख्यात गुणवृद्धि में से एक विभाग प्रतिच्छेद कम कर देने पर स्थानान्तर" होता है । यह प्रधस्तन श्रनन्तभागवृद्धि स्थानान्तरों से अनन्तगुणा असंख्यात भाग वृद्धि, संख्यात भाग वृद्धि और संख्यातगुण वृद्धि स्थानान्तरों से असंख्यातगुरणा, उपरिम गुणवृद्धि स्थान के नीचे स्थित अनन्त भागवृद्धि स्थानान्तरों से अनन्त गुणा, असंख्यात भाग वृद्धि स्थानान्तरों से असंख्यात गुणा, संख्यात भागवृद्धि स्थानान्तरों से संख्यात गुगा संख्यातभाग हीन, संख्यातगुण हीन अथवा प्रसंख्यातगुण हीन तथा संख्यात गुणवृद्धि व श्रसंख्यात गुणवृद्धि स्थानान्तरों से श्रसंख्यातगुणाहीन है । आगे जानकर लेजाना चाहिए। *
अनन्तगुणवृद्धि सब जीवों के गुरणाकार से वृद्धिंगत है || २१४ ॥ १ श्रधस्तन उवक को सच जीवराशि से गुणा करने पर अनन्त गुणवृद्धि होती है। उसी को प्रतिराशि करके अनन्तगुणवृद्धि के मिलाने पर अनन्तगुणवृद्धि स्थान होता है । यहाँ पर भी स्थानान्तरों से तुलना करनी चाहिए। इस प्रकार असंख्यात लोक मात्र पद्स्थानों में स्थित वृद्धियों की प्ररूपणा करनी चाहिए ।
यहाँ अनन्तभाग वृद्धि की उर्वक संज्ञा है, असंख्यातभाग वृद्धि की चतुरंक, संख्यातभागवृद्धि की पंचांक, संख्यातगुणवृद्धि को षडंक, प्रसंख्यात गुणवृद्धि की सप्तांक और अनन्तगुणवृद्धि की अष्टक संज्ञा जाननी चाहिए ।" उ और ३ का अंक ( ३ ) सदृश है इसलिए अनन्तभागवृद्धि की संज्ञा त्र्यंक न रख कर उर्वक रखदी गई, प्रयोजन तीन के अंक से ही है। क्योंकि तीन, चार, पाँच, छह, सात, आठ ये छह स्थान हो जाते हैं। शेष स्थानों की चतुरंक ग्रादि संज्ञा यथाक्रम संख्या दी गई है।
शङ्का अष्टांक किसे कहते हैं ?
समाधान - अधस्तन उर्वक को सब जीवराशि से गुणित करने पर जो प्राप्त हो उतने मात्र से जो स्तन उक से अधिक स्थान है, वह अष्टांक है ।
शङ्का – जघन्य स्थान प्रष्टांक है, यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान- 'जघन्य स्थान से अनन्तभागवृद्धिस्थानों का कोडक जाकर प्रसंख्यात भाग वृद्धि का
१. घवल पु. १२ पृ. १५५-१५६ । २. वल पू. १२ पृ. १५६ । १५६-१५७ । ५. धवल पु. १२ पृ. १५७-१५६ । ६. धवल पु.
३. ध. पु. १२ पृ. १२ पृ. १७० ।
१५६ । ४. धवल पु. १२ पृ. ७. धवल पु. १२ पृ. १३१ ।