Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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४१४ / गो. सा. जीवकाण्ड
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द्वितीय खण्ड को ग्रहरण कर प्रथम खण्ड के ऊपर स्थापित करने पर उत्कृष्ट संख्यात के चतुर्थ भाग विष्कम्भ और प्रायामयुक्त समचतुस्र क्षेत्र होता है। इसको उत्कृष्ट संख्यात के चतुर्थ भाग विष्कम्भ और उसके तीन चतुर्थ भाग प्रायाम वाले पूर्व के क्षेत्र में मिला देने पर उत्कृष्ट संख्यात प्रमाण आयाम और उसके चतुर्थ भाग मात्र विष्कम्भ युक्त क्षेत्र होकर स्थित रहता है । उसका प्रमारण यह है
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गाथा ३२३-३३१
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यहाँ कि उत्कृष्ट संख्यात प्रमाण पिशुलों को ग्रहण कर एक संख्यातभागवृद्धिप्रक्षेप होता है, श्रतएव समस्त प्रक्षेप उत्कृष्ट संख्यात के चतुर्थ भाग प्रमाण होते हैं। इन (४ ) प्रक्षेपों को पहले उत्कृष्ट संख्यात के तीन चतुर्थ भाग प्रमाण (१२) प्रक्षेपों में मिलाने पर उत्कृष्ट संख्यात (१६) प्रमाण संख्यातभागवृद्धिप्रक्षेप होते हैं। ये सब मिलकर एक जघन्य स्थान होता है। इसे एक जघन्य स्थान में मिलाने पर दुगुनी वृद्धि होती है। शेष पिशुल और पिशुला पिशुल उसी प्रकार से स्थित रहते हैं । यह भी स्थूल अर्थ है ।
अब इसकी अपेक्षा सूक्ष्म अर्थ की प्ररूपणा करते हैं - उत्कृष्ट संख्यात के छप्पन खण्ड करके उनमें से इकतालीस खण्ड प्रथम संख्यातभागवृद्धिस्थान से आगे जाकर अथवा उत्कृष्ट संख्यात प्रमाण संख्यातभागवृद्धिस्थानों के श्रन्तिम स्थान से पन्द्रह खण्ड नीचे उतर कर वहां के स्थान में दुगुणी वृद्धि का स्थान उत्पन्न होता है । यथा - इकतालीस मात्र खण्ड ऊपर चढ़ कर स्थित वहाँ के स्थान में ( ४१ ) खण्ड प्रमाण ही सकल प्रक्षेप पाये जाते हैं ।
अब यहाँ पन्द्रह खण्ड प्रमाण सकल प्रक्षेपों के होने पर एक जघन्य स्थान उत्पन्न होता है । उनकी उत्पत्ति का विधान बतलाते हैं - वहाँ के स्थान सम्बन्धी पिशुलों का प्रमाण इकतालीस खण्डों के संकलन मात्र है ( ४१ ) ।
शङ्का - वह एक अंक से कम है, ऐसा क्यों नहीं कहते ?
समाधान- नहीं, क्योंकि स्तोक स्वरूप होने से यहाँ उसकी प्रधानता नहीं है ।
फिर उनका समीकरण करने पर इकतालीस खण्ड प्रमाण आयाम और इकतालीस के द्वितीय भाग प्रमाण त्रिष्कम्भ से युक्त होकर क्षेत्र स्थित होता है - २०३४ । इस प्रकार से स्थित क्षेत्र के भीतर पन्द्रह खण्ड विस्तृत और इकतालीस खण्ड प्रायत क्षेत्र को ग्रहण करने के लिए पहले आयाम के प्रमाण से पन्द्रह खण्ड मात्र पिशुलों के बराबर विष्कम्भ को छोड़ कर एक खण्ड के द्वितीय भाग से अधिक पाँच खण्ड प्रमाण विस्तृत और इकतालीस खण्ड प्रमाण प्रायत क्षेत्र को खण्डित करके अलग करके पृथक् स्थापित करना चाहिए ३४१। फिर इसमें से एक खण्ड के अर्थ भाग मात्र विष्कम्भ और इकतालीस खण्ड मात्र आयाम से क्षेत्र को ग्रहण कर पृथक् स्थापित करना चाहिए । फिर इसमें से एक खण्ड के प्रभाग मात्र विष्कम्भ और एक खण्ड मात्र आयाम से काट कर पृथक् स्थापित करना चाहिए ३ इस ग्रहण किये गये क्षेत्र से शेष क्षेत्र इतना होता है । ३४ । इस क्षेत्र के