Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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४१० / गो. सा. जीवकाण्ड
गाथा ३२३-३३१
स्थान होता है।' यह जो प्ररूपणा की गई है उससे जाना जाता है कि जघन्य स्थान उर्वक नहीं है। क्योंकि उर्वक होने पर समस्त काण्डक प्रमाण गमन घटित नहीं होता । वह चतुरंक भी सम्भव नहीं है, क्योंकि काण्ड प्रसारण असंख्यात भागवृद्धियां जाकर प्रथम संख्यात वृद्धि होती है। ऐसा वहीं कहा गया है ! वह पंचांक भी नहीं हो सकता, क्योंकि संख्यात भागवृद्धि काण्डक जाकर संख्यातगुणवृद्धि होती है, ऐसा कहा गया है। वह षष्ठांक भी सम्भव नहीं है, क्योंकि काण्डक मात्र संख्यात गुणवृद्धि जाकर प्रसंख्यात गुणवृद्धि होती है, ऐसा वचन है। वह सप्तांक भी नहीं हो सकता, क्योंकि काण्डक प्रमाण असंख्यात गुणवृद्धि जाकर अनन्त गुणवृद्धि होती है ऐसा सूत्र वचन है । अतएव परिशेष स्वरूप से वह जघन्य स्थान ऋष्यांक ही है ।"
क्योंकि जघन्य स्थान ग्रष्टांक है अतः प्रथम षट्स्थान में अनन्तगुणवृद्धि सम्भव नहीं है । शेष स्थानों में प्रथम स्थान अनन्त गुणवृद्धि का होता है अतः शेष षट् स्थानों में छहों वृद्धियाँ सम्भव हैं किन्तु प्रथम पट् स्थान में पाँच वृद्धियाँ होती हैं ।
शङ्का–काण्डक का प्रमाण कितना है ?
समाधान — काण्डक का प्रमाण अंगुल का प्रसंख्यातवाँ भाग है। उसका (अंगुल का ) भागहार क्या है, विशिष्ट उपदेश का अभाव होने से उसका परिज्ञान नहीं है ।
अनन्तभागवृद्धिकाण्डक प्रमाण जाकर असंख्यात भाग वृद्धि का स्थान होता है ।। २१५ ३ | ३ अनन्तभागवृद्धियों के काण्डक का वर्ग और एक काण्डक जाकर संख्यात भागवृद्धि का स्थान होता है ॥२२० ॥ * एक असंख्यात भाग वृद्धि के नीचे यदि काण्डक प्रमाण अनन्त भाग वृद्धियाँ होती हैं तो एक अधिक काण्डक प्रमाण असंख्यात भाग वृद्धियों के नीचे वे (अनन्तभाग बुद्धियाँ) कितनी होंगी, इस प्रकार प्रमाण से फलगुणित इच्छा को अपवर्तित करने पर [ ( काण्डक ) x ( काण्डक + १ ) ] काण्डक सहित काण्डक के वर्ग प्रमाण अनन्तभाग वृद्धियाँ होती हैं । अंक संदृष्टि में काण्डक - ४ ४× (४+१)- [(४× ४ ) + ४] इतनी अनन्तभाग बृद्धियाँ बिना संख्यात भागवृद्धि उत्पन्न नहीं हो सकतीं ।
शङ्का - संख्यात भाग वृद्धि के नीचे काण्डकप्रमाण हो असंख्यात भाग वृद्धियाँ होती हैं। प्रब राशिक करने पर एक अधिक काण्डक अनन्तभाग वृद्धिस्थानों का उत्पन्न कराना कैसे योग्य है ?
समाधान- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि संख्यातभाग वृद्धि के नीचे प्रसंख्यात भागवृद्धियाँ काण्डक प्रमाण ही होती हैं, किन्तु अन्य एक प्रसंख्यातभाग वृद्धि के विषय (स्थान) को प्राप्त होकर संस्थात भाग वृद्धि के योग्य ग्रध्वान में असंख्यात भाग वृद्धि न होकर संख्यात भाग वृद्धि उत्पन्न होती है। इसलिए उक्त कथन दोष को प्राप्त नहीं होता ।
असंख्यात भाग वृद्धियों का काण्डक वर्ग व एक काण्डक जाकर (१६+४) संख्यात गुणवृद्धि का स्थान होता है ।। २२१|| एक संख्यातभाग वृद्धि के नीचे यदि काण्डकप्रमाण असंख्यात भाग
१. घवल पु. १२ पृ. १३०-१३१ । २. धवल पु. १२ पृ. १६३ । ३. धवल पु. १२ पृ. १६३ । ४. घवल पु. १२ पृ. १२६ । ५. घबल पु. १२ पृ. १६६-१६७ । ६. धवल पु.
१२ पृ. १६७ ।