Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ३२३-३३१
ज्ञानमार्गापा/१०७
क
उत्पन्न होता है।'
असंख्यातभागवृद्धि प्रसंख्यातलोकभागवृद्धि द्वारा होती है। इतनी मात्र वृद्धि होती है ॥२०६॥ "असंख्यातलोक" ऐसा कहने पर जिन भगवान के द्वारा (धुतकेवली के द्वारा) जिनका स्वरूप जाना गया ऐसे असंख्यात लोकों का ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि इस सम्बन्ध में विशिष्ट उपदेश का अभाव है। अनन्तभागवृद्धिकाण्डक के अन्तिम अनन्तभागवृद्धिस्थान में प्रसंख्यातलोक का भाय देने पर जो लब्ध हो उसको उसी में मिला देने पर असंख्यात भागवृद्धि का प्रथम स्थान उत्पन्न होता है। यह स्थानान्तर अधस्तन स्थानान्तर से अनन्तगुणा होता है । गुणाकार असंख्यातलोक से अपवर्तित एक अधिक सब जीवराशि है।' इसका स्पष्टीकरण
माना कि उस विवक्षित स्थान के प्रविभागप्रतिच्छेद "क" हैं, जिसके कि वाद वाला स्थान अन्तिम अनन्तभागवृद्धिस्थान है; और ठीक तत्पश्चात् असंख्यातभागवृद्धिस्थान प्राता है । तो
विवक्षित स्थान के अविभाग प्रतिच्छेद == 'क' अत: इसके ऊपर होने वाली अनन्तभागवृद्धि - ----
जीवराशि अतः "क" अविभाग प्रतिच्छेदों में उक्त अनन्तभागवृद्धि को मिलाने पर--
(जीवराशि xक) + क जीवराशि
जीवराशि यही अन्तिम अनन्तभागवृद्धि स्थान है। अब इसके ठीक बाद असंख्यातभाग वृद्धिस्थान है। वह इतना होगा := अन्तिम अनन्तभागवृद्धिस्थान + अन्तिम अनन्तभागवृद्धि स्थान का असंख्याताभाग (जीवराशि - क) + क (जीवराशि x क) + क जीवराशि
जीवराशि x असंख्यातलोक क (जीवराशि + १ क (जीवराणि+१) जीवराणि + जीबराशि - असं. लोक
क(जीवराशि १) नोट --इस असंख्यातभागवद्धिस्थान में मात्र वृद्धि = ---
__ जीवराशि x असं.लोक अब अधस्तन स्थान में वृद्धि थी = ----- ...... {A)
जीवराशि
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+
- इतनी है।
१. ध.पु. १२ पृ. १३५। २. घ.पु. १२ पृ. १५१ । ३. धवल पु. १२ पृ. १५१ ।