Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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३१६/गो, सा, जीवकाण्ड
गाथा २४४
समाधान- सातावेदनीय, तीर्थंकर, उचगोत्र, मनुष्यायु इत्यादि बयालीस पुण्यप्रकृतियों हैं। ये पुण्यप्रकृतियाँ तीर्थकरादिक पदों अर्थात् अर्हन्त पद के सुख को देने वाली हैं। इसलिये पुण्य का लक्षण जो आत्मा को पवित्र करता है, यह यथार्थ है।
शरीर नामाई के दिय से बोरवन फर्मत नो बगरणाओं को ग्रहगा करने की शक्ति प्रात्मा में उत्पन्न होती है। जिनके शरीर नामकर्म के उदय का अभाव हो गया उनके उसके कार्यभूत योग का भी प्रभाव हो जाता है, क्योंकि कारण के अभाव में कार्योत्पत्ति असम्भव है। अत: चोदहवें गुणस्थानवर्ती अयोगीकेवली और गुणस्थानातीत सिद्ध भगवान के शरीर नामकर्म का उदय न होने से योग का अभाव है। सातवें गुणस्थान से तेरहवं गुणस्थान तक शुभ योग है। पहले गुणस्थान से छठे गुणस्थान तक शुभ और अशुभ दोनों योग हैं।
शंका - योग का अभाव होने से सिद्ध भगवान के बल के अभाव का प्रसंग प्राप्त होता है, क्योंकि हमारे योग के प्राश्रय से हो बल देखा जाता है ?
समाधान--सिद्ध भगवान का बल हमारे जमा बल नहीं है। सिद्ध भगवान का वन अनन्न है। लोक-अलोक समस्त ज्ञेयों को युगपत् जानने में उनको खेद या थकावट नहीं होती। इसीलिए गाथा में अनुपमअनन्तबलकलिताः' शब्द दिया है।
शरीर में कर्म-नोकर्म का विभाग पोरालियवेगुन्वियमाहारयतेजरणामकम्मुदये ।
चउरणोकम्मसरीरा कम्मेय य होदि कम्मइयं ॥२४४॥ गाथार्थ- प्रौदारिक, वैक्रियिक, प्राहारक, नेजस नामकर्म के उदय से होने वाले ये चार शरीर नोकर्म हैं। कर्म ही कार्मण शरीर हैं ।।२४४।।
विशेषार्थ-कर्म के उदय से होने वाले चार शरीर (औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तेजस) नोकर्म हैं।
शङ्खा—औदारिक प्रादि चार शरीरों की 'नोकर्म' संज्ञा क्यों है ?
समाधान—'नो' शब्द का प्रयोग निषेध के लिए भी होता है और ईषत् के लिए भी होता है। जैसे नोकषाय में 'नो' शब्द का प्रयोग ईषत् के लिए हुआ है उसी प्रकार 'नोकर्म' में नो शब्द का प्रयोग ईषत् के लिए हुआ है। ये प्रौदारिक आदि चार शरीर काम के समान यात्मा के गुणों को नहीं घातते। जैसे कार्मण शरीर प्रात्मा के गुणों को घातता है और चारों गतियों में परिभ्रमण कराता है उस प्रकार से औदारिक आदि चार शरीर न तो आत्मा के गुणों को धातते हैं और न चारों गतियों में परिभ्रमण कगते हैं। इसलिए चार शरीरों की नोक्रम संजा है। ये चारों शरीर कार्मण
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१. "पुण्यप्रकृतपस्तीर्थपदादिमुखखानयः ।" (मूलाचार प्रदीप पांचवा अधिकार क्लोक १५८ पृ. २००]; "पुणग फला परहंता'' [प्रवचनसार गाथा २३], "पहन्त: मलु सकलसम्यकपरिपक्वपुरवाल्पपादपप.ला एव भवन्ति ।' [आचार्य अमृतचन्द्र कृत टीका] । २. गो.जी गा, २१६ ।