Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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२५४/गो, सा, जीवकाण्ड
गाथा २८३
समाधान ऐसा नहीं है, क्योंकि सासादन गुणस्थान को स्वतन्त्र फहने से अनन्तानुबन्धी प्रकृतियों की द्विस्वभाबता का कथन सिद्ध हो जाता है।
शङ्का-अनन्तानुबन्धी सम्यक्त्व और चारित्र इन दोनों का प्रतिबन्धक होने से उसे उभयरूप संज्ञा देना न्यायसंगत है ?
समाधान--यह प्रारोप ठीक नहीं है, क्योंकि यह तो हमें इष्ट ही है फिर भी परमागम में मुख्य नय की अपेक्षा इस तरह का उपदेश नहीं दिया है ।'
शा- अनन्तानुबन्धी कषायों की शक्ति दो प्रकार की है, इस विषय में क्या युक्ति है ?
समाधान --अनन्तानुबन्धी कषाय के उदय से सासादन भाव की उत्पत्ति अन्यथा हो नहीं सकती, इस अन्यथानुपपत्ति से अनन्तानुबन्धी के दर्शनमोहनीयता सिद्ध होती है। चारित्र में अनन्तानुबन्धी का व्यापार निष्फल भी नहीं है, क्योंकि चारित्र की घातक अप्रत्याख्यानावरणादि कषायों के अनन्त उदय रूप प्रवाह के कारणभूत अनन्तानुवन्धी कषाय के निष्फलत्व का विरोध है ।।
प्रत्याख्यान और संयम एकार्थवाले नाम हैं। अप्रत्याख्यान अर्थात् ईषत् (अल्प) प्रत्याख्यान (त्याग)। अल्पत्याग को अथवा संयमासंयम को या देशचारित्र को अप्रत्याख्यान कहते हैं । उसका यावरण करने वाली कषाय अप्रत्याख्यानावरण कषाय है ।'
प्रत्याख्यान अर्थात् संयम का जो आवरण करती है, वह प्रत्याख्यानावरण कषाय है। जो सम्यक् प्रकार जलता है वह संज्वलन कषाय है ।
शङ्का–संज्वलन कषाय में सम्यक्पना क्या है ?
समाधान–चारित्र के साथ जलना ही इसका सम्यक्पना है। चारित्र का विनाश नहीं करते हुए यह कषाय उदय को प्राप्त होती है, यह अर्थ कहा गया है ।
शङ्का---चारित्र का विनाश नहीं करने वाले संज्वलन कषाय के चारित्रावरणता कैसे बन सकती है?
समाधान नहीं, क्योंकि संज्वलनकषाय संयम में मल को उत्पन्न करके यथाख्यात चारित्र की प्रतिबन्धक होती है। इसलिए संज्वलन कषाय के चारित्रावरणता मानने में कोई विरोध नहीं है।'
अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन के भेद से कषाय चार प्रकार की है। इन चारों में से प्रत्येक के क्रोध, मान, माया, लोभ भेद करने से कषाय १६ प्रकार की है। जैसे अनन्तानुबन्धी क्रोध-मान-माया-लोभ, अप्रत्याख्यानावरण कोध-मान-माया-लोभ प्रत्याख्यानावरण क्रोध-मान-माया-लोभ, संज्वलन क्रोध, संज्वलन मान, संज्वलन माया, संज्वलन लोभ । प्रत्यास्यानावरण और अप्रत्याख्यानावरण कषायों के समान चारों संज्वलन
१. घवल पु. १. पृ. १६५ 1 २. अत्रल पु. ६ पृ. ४२.४३ । ३. धवन पु. ६ पृ. ४३.४४ । ४. धवल पु. ६ पृ. ४४ । ५. घवल पु. ६ पृ. ४४ 1