Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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३.५६/मो. सा. जीवकाण्ड
गाथा २८३
रूप से यद्वातद्वा बोलता है, उसी प्रकार मदवश उत्पन्न हुए दर्प से स्खलित यद्वातद्वा बोलते हुए स्तब्ध हो जाना स्तम्भ है। उसी प्रकार उत्कर्ष, प्रकर्ष और समुत्कर्ष ये तीनों भी मान के पर्यायवाची नाम घटित हो जाते हैं, क्योंकि ये तीन भी अभिमान के द्योतक हैं ।' अपने उत्कर्ष का नाम प्रात्मोस्कर्ष है। मैं ही जाति आदिरूप से उत्कृष्ट हूँ, मुझसे अन्य कोई दूसरा उत्कृष्ट नहीं है, इस प्रकार के अध्यवसाय का नाम प्रात्मोत्कर्ष है। दूसरे को परिभवन अर्थात् नीचा दिखाना परिभव है, दूसरे का अपमान करना परिभव है । अपने उत्कर्ष और दूसरे के परिभव के द्वारा उद्धत होता हुआ उत्चिति अर्थात् गवित होना उरिसक्त है। इस प्रकार मान के ये दस पर्यायवाची नाम हैं ।
माया य सादिजोगो गियी वि य वंचणा प्रणुज्जुगदा ।
गहणं मणपणमगरण कक्क कुहक गृहणच्छण्णो ॥३॥' --माया, सातियोग, निकृति, वञ्चना, अनुजुता, ग्रहण, मनोज्ञमार्गणा, कक्क, कुहक, गृहन और छन्न माया कषाय के ये ग्यारह पर्यायवाची नाम हैं। कपटप्रयोग का नाम माया है । कुटिल व्यवहार का नाम सातियोग है। ठगने के अभिप्राय का नाम निकृति है। विप्रलन्मन का नाम वश्वना है। योग की कुटिलता का नाम अनुजुता है। दूसरे के मनोज्ञ अर्थ को प्राप्त कर उसका अपलाप करने का नाम ग्रहण है अर्थात् भीतरी वञ्चना के अभिप्राय का निभृताकार रूप से गूढ मंत्र करना। मिथ्या विनय आदि उपचारों द्वारा दूसरे से मनोज्ञ अर्थ के स्वीकार करने के अभिप्राय का नाम मनोजमार्गण है। दम्भ का नाम कल्क है। भूटे मन्त्र, तन्त्र और उपदेशादि द्वारा.लोक का उपजीयन करना कुहक है। भीतरी दुराशय का बाह्य में संवरण करना (छिपाना) निगृहन है। छद्मप्रयोग करना छन्न है । प्रतिसन्धान और विश्रम्भधात प्रादि 'छन्न' है।
कामो रागरिणवाणो छंदो य सुदो य पेज्ज दोसो य ।
हाणुराग पासा इच्छा मुच्छा य गिद्धी य ॥४॥ सासव पत्यण लालस अविरवि तण्हा य विज जिम्भा य। लोभस्स णामधेज्जा वीसं एमट्ठिया भणिया ॥५॥
--काम, राग, निदान, छन्द, सूत, प्रेय, दोष, स्नेह, अनुराग, पाशा, इच्छा, मूळ, गृद्धि, साशता, प्रार्थना, लालसा, अविरति, तृष्णा, विद्या और जिह्वा ये २० लोभ के एकार्थक नाम कहे गये हैं। इष्टस्त्री और इष्टपति या पुत्र प्रादि परिग्रह की अभिलाषा का नाम काम है। मनोज्ञ विषय के अभिष्वंग का नाम राग है। जन्मान्तर के सम्बन्ध से संकल्प करने का नाम निदान है अर्थात जन्मान्तर में भी इस प्रकार की भोगसम्पन्नता कैसे होगी, इस प्रकार अनागत विषय की प्रार्थना में अभिसन्धान का होना निदान है। मन के अनुकूल विषय के बार-बार भोगने में मन के प्रणिधान का नाम छन्द है। नाना प्रकार के विषयों के अभिलाषरूप कलुषित जल के द्वारा 'सूयते प्रति परि-.. -- १. ज.प. पु. १२ पृ. १८७-१८८। २. "म्तम्भ-मद मान-दर्प-समुत्कर्ष-प्रकर्षापच । आत्मोत्कर्ष-परिभवा उतिसक्तश्चेति मानपर्यायाः । [ज.ध.पु १२ पृ. २८८]। ३. जयधवल पु. १२ 'वजणे अणियोगद्दार' प. १८८ मा. ३ । ४. ज.ब.पु. १२ पृ१८८-१८६ “मायाय सातियोगो निकृतिरों बचना तयान जुता। ग्रहणं मनोज्ञमागरण-कहक-हक गूहनच्छन्नम् ।” (जमवल पु. १२ पृ. २८६) । ५. जयघबल पु. १२ 'बजरणे अणियोगद्दार' पृ. १८६ गा, ४-५ ।