Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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३५८/गो. सा. जीवकाण्ड
गाथा २८४
शङ्का-क्रोध, मान, माया और लोभ ये चारों दोष हैं, क्योंकि वे स्वयं पात्रवरूप हैं या प्रास्रव के कारण हैं ?
समाधान -- यह कहना ठीक है, किन्तु यहाँ पर कौनसी कपाय आनन्द की कारण है और कौनसी पानन्द की कारण नहीं है, इतने मात्र की विवक्षा है, इसलिए यह कोई दोष नहीं है। अथवा प्रेम में दोषपना पाया ही जाता है । अतः माया और लोभ प्रेय (पेज्ज) हैं।'
व्यवहारनय की अपेक्षा त्रोध दोष है, मान दोष है, माया दोष है और लोभ पेज्ज है।
शा-क्रोध और मान दोष हैं यह कहना युक्त है, परन्तु माया को दोष कहना ठीक नहीं, क्योंकि माया में दोष का व्यवहार नहीं देखा जाता है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि माया में भी अविश्वास का कारणपना और लोकनिन्दितपना देखा जाता है। जो वस्तु लोकनिन्दित होती है वह प्रिय नहीं हो सकती, क्योंकि निन्दा से हमेशा दुःख उत्पन्न होता है। लोभ पेज्ज है, क्योंकि लोभ के द्वारा बचाये हुए दूध्य से जीवन सुखपूर्वक व्यतीत होता है ।
शब्दनय की अपेक्षा क्रोध दोष है, मान दोष है, माया दोष है, लोभ दोष है किन्तु लोभ कथंचित पेज्ज है।
कोषात्प्रोतिविनाशं मानाद्विनयोपधातमाप्नोति ।
शाठयात्प्रत्ययहानि सर्वगुणविनाशको लोभः ॥१४६॥' --क्रोध से प्रीति का नाश होता है, मान से विनय का घात होता है, शठता से विश्वासघात होता है। लोभ से समस्तगुरा पाते जाते हैं ।
क्रोध, मान और माया से जीव को संतोष और परमानन्द की प्राप्ति नहीं होती। लोभ कथंचित् पेज्ज है, क्योंकि रत्नश्रय के साधन विषयक लोभ से स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति देखी जाती है, तथा शेष पदार्थ विषयक लोभ पेज्ज नहीं है, क्योंकि उससे पाप की उत्पत्ति देखी जाती है।
शा-धर्म भी पेज्ज नहीं है ?
समाधान- यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि सुख और दुःख के कारणभूत धर्म और अधर्म को पेज्ज और दोषरूप नहीं मानने पर धर्म और अधर्म के भी प्रभाव का प्रसङ्ग प्राप्त होता है।'
शक्ति की अपेक्षा क्रोधादि चार कषायों के भेद सिल पुढविमेवधूलीजल राइसमारगो हबे कोहो । पारयतिरियरणरामरगईसु उप्पायरो कमसो ॥२८४।।
१. जयघवत पु. १ पृ. ३६६ । २. जयधवल पु. १ पृ. ३६७-३६८ । ३. जयधवल गु. १ पृ. ३६६ । ४, जयधवल पृ. १ पृ. ३६६-६७०।