Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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३७६ / गो. सा. जीव काण्ड
गाथा ३००-३०१
शङ्का-घट, पट, स्तम्भ आदि पदार्थों में मिथ्यादृष्टियों के भी यथार्थज्ञान व श्रद्धान पाया
जाता है ?
समाधान- नहीं पाया जाता, क्योंकि उनके उस ज्ञान में भी अनध्यवसाय श्रर्थात् प्रनिश्चय देखा जाता है। यह बात प्रसिद्ध भी नहीं है, क्योंकि 'यह ऐसा ही है' ऐसे निश्चय का वहाँ अभाव होता है । अथवा यथार्थ दिशा के सम्बन्ध में विमूढ़ जीव वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श इन चार इन्द्रियविषयों के ज्ञानानुसार श्रद्धान करता हुआ भी अज्ञानी कहलाता है, क्योंकि उसके यथार्थ ज्ञान की दिशा में श्रद्धान का प्रभाव है। इसी प्रकार स्तंभादि पदार्थों में यथाज्ञान श्रद्धा रखता हुआ भी जीव जिन भगवान के वचनानुसार श्रद्धान के प्रभाव में अज्ञानी कहलाता है । '
क्षायोपशमिक लब्धि से जीव मत्यज्ञानी श्रादि होता है ||४५ | | ३ अर्थात् मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और तीन प्रज्ञान क्षायोपशमिक भाव हैं ।
शङ्का-मति प्रज्ञानी के क्षायोपशमिक लब्धि कैसे मानी जा सकती है ?
समाधान क्योंकि, उस जीव के मत्यज्ञानावरणकर्म के देशघाती स्पर्धकों के उदय से मत्यज्ञानित्व पाया जाता है।
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शका - यदि देशघाती स्पर्धकों के उदय से अज्ञानित्व होता है तो प्रज्ञामित्व को औदयिक भाव मानने का प्रसंग आता है ?
समाधान- - नहीं प्राता, क्योंकि वहाँ सर्वघाती स्पर्धकों के उदय का प्रभाव है ।
शङ्का - तो फिर अज्ञानित्व में क्षायोपशमिकत्व क्या है ?
समाधान- आवरण के होते हुए भी आवरणीय ज्ञान का एकदेश जहाँ पर उदय में पाया जाता है, उसी भाव को क्षायोपयामिक नाम दिया गया है। इससे अज्ञान को क्षायोपशमिक भाव मानने में कोई विरोध नहीं माता । अथवा ज्ञान के विनाश का नाम क्षय है । उस क्षय का उपशम हुआ एकदेशक्षय है। इस प्रकार एकदेशीयक्षय की क्षयोपशम संज्ञा मानी जा सकती है। ऐसा क्षयोपशम होने पर जो ज्ञान या अज्ञान उत्पन्न होता है, वही क्षायोपशमिक लब्धि है ।
इसी प्रकार ताज्ञान, विभंगज्ञान, मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मन:पर्ययज्ञान को भी क्षायोपशमिक भाव कहना चाहिए। विशेषता केवल यह है कि इन सब ज्ञानों में अपने-अपने श्रावरणों के देशघाती स्पर्धकों के उदय से क्षायोपशमिक लब्धि होती है ।
शङ्का - इन सातों ज्ञानों के सात ही आवरण क्यों नहीं होते ?
समाधान- नहीं होते, क्योंकि पाँच ज्ञानों के अतिरिक्त अन्य कोई ज्ञान पाये नहीं जाते। किन्तु इससे मत्यज्ञान, श्रुताज्ञान और विभंगज्ञान का प्रभाव नहीं हो जाता, क्योंकि उनका यथाक्रम से मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान में अन्तर्भाव होता है ।
१. घवल पु. ७ पृ. ८६ । २. ग्रोवस मिया एलबीए ।" [बचल पु. ७ पृ. ५६] । ३. धवल पु. ७ पृ. ८७