Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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३६४) गो. सा. जीवकाण्ड
गाथार्थ---नरक, तिर्यंच, मनुष्य व देवगति में उत्पन्न होने के प्रथम काल माया, मान व लोभ का उदय होता है। अथवा ऐसा नियम नहीं भी है || २६८ ॥
गाथा २८६
श्रम से क्रोध,
विशेषार्थ - नरकों में उत्पन्न होने वाले जीवों के सर्वप्रथम क्रोध कषाय का उदय पाया जाता है । मनुष्यों में उत्पन्न हुए जीव के प्रथम समय में मानकषाय के उदय के नियम का उपदेश देखा जाता है। तिर्यचों में उत्पन्न होने के प्रथम समय में माया कषाय के उदय का नियम देखा जाता है । देवों में उत्पन्न होने वाले जीवों के सर्वप्रथम लोभ कषाय का उदय होता है। ऐसा प्राचार्यपरम्परागत उपदेश है ।' नरक, मनुष्य, तिच और देवगतियों में उत्पन्न हुए जीवों के प्रथम समय में यथाक्रम से क्रोध, मान, माया और लोभ का उदय देखा जाता है ।
शंका- देवों में उत्पन्न होने के प्रथम समय में लोभ को छोड़ कर शेष कषायों का उदय नहीं पाया जाता है?
समाधान — यह कहना तब ठीक होता जब यहाँ भी वैसा अभिप्राय विवक्षित होता । किन्तु प्रकृत में चूणिसूत्रकार का अभिप्राय है कि देवों में उत्पन्न होने के प्रथम समय में इस प्रकार का नियम नहीं पाया जाता । सामान्य से सब कषायों का उदय वहीं विरोध को नहीं प्राप्त होता । देवों में उत्पन्न होने के प्रथम समय में सब कषायों का उदय सम्भव है ।
शङ्का - क्रोधादि कषायों में उपयुक्त हुए जीवों का मरण की अपेक्षा जघन्यकाल एक समयमात्र है ऐसा जीवस्थान यादि ग्रन्थों में कहा है, वह यहाँ पर क्यों स्वीकार नहीं किया गया ?
समाधान नहीं, क्योंकि चूर्णिसूत्र के अभिप्राय अनुसार उस प्रकार काल को स्वीकार करना सम्भव नहीं है ।"
श्री भूतबली श्राचार्य के कथनानुसार देवगति यादि में उत्पन्न होने के प्रथम काल में लोभ आदि कषायों के उदय होने का नियम देखा जाता है, किन्तु श्री यतिवृषभाचार्य कृत चूरिणसूत्रों के अनुसार उक्त प्रकार का नियम नहीं पाया जाता है। जैसा कि घवल व जयधवल के उपर्युक्त कथनों से स्पष्ट है ।
इस गाथा का निर्माण श्री भूतबली के कथनानुसार हुआ है, किन्तु गाथा में 'अशियमो वा' इन शब्दों द्वारा श्री यतिवृषभाचार्य के मत की भी सूचना दी गई है । इस प्रकार भिन्न-भिन्न दो महान् श्राचार्यों के दो भिन्न भिन्न मत हैं । इन दोनों में से कौन ठीक है, यह नहीं कहा जा सकता, क्योंकि वर्तमान में श्रुतकेवली का प्रभाव है ।
कषायरहित जीव
श्रप्यपरो भयबाधरबंधासंजमरिण मिल - कोहादी । जैसि गत्थि कसाया अमला अकसाहरणो जीवा ||२६||*
१. श्रवल पु. १ पृ. ४४५ ।
४. जयबवल
२. त्रवल पु. ७. १६१ । २. जयघवल पू. ७ पृ. २२५ षु. १३ š. १५ । ५. यह गाया घवल पु. १ पृ. ३५१, तथा प्रा. पं. संग्रह पु. २५ गा. ११६ पर भी है ।