Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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३१४/गो. सा. जीवकाण्ड
गाचा २४३
मानकर चार शरीर के ही अस्तित्व का कथन किया है। यदि ग्रागे के दो सूत्रों के आधार पर उसको बैंक्रियिक माना जाय तो पांच शरीर का अस्तित्व सिद्ध हो जाता है।
शङ्का तीनों योगों की प्रवृत्ति युगपत् होती है या नहीं ?
समाधान :- युगपत् नहीं होती, क्योंकि एक प्रात्मा के तीनों योगों की प्रवृत्ति युगपत् मानने पर योग-निरोध का प्रसंग प्राजाएगा।
शङ्का-कहीं पर मन, वचन और काय की प्रवृत्तियो युगपत् देखो जातो हैं ?
समाधान–यदि देखी जाती हैं, तो उनकी युगपत् वृत्ति होयो। परन्तु उस के मन-वचन मोर काय पनि निरनो प्रयास होते हैं. उनकी युगपत् वृत्ति सिद्ध नहीं हो सकती है। क्योंकि प्रागम में इस प्रकार का उपदेश नहीं मिलता है।
शङ्का- दो या तीन योग एक साथ क्यों नहीं होते ? समाधान नहीं होते, क्योंकि उनकी एक साथ प्रवृत्ति का निषेध किया गया है। शङ्का-- अनेक योगों की एक साथ वृत्ति पाई तो जाती है ?
समाधान नहीं पाई जाती, क्योंकि इन्द्रियों के विषय से परे जो जीवप्रदेशों का परिस्पन्द होता है, उसका इन्द्रियों द्वारा ज्ञान मान लेने में विरोध आता है। जीवों के चलते समय जीवप्रदेशों के संकोच-विकोच का नियम नहीं है. क्योंकि सिद्ध होने के प्रथम समय में जब जीव यहाँ से (मध्यलोक से) लोक के अग्रभाग को जाता है तब उसके जीवप्रदेशों में संकोच-विकोच नहीं पाया जाता।
इस प्रकार यह सिद्ध हो जाता है कि एक समय में एक ही योग होता है। एक जीव में एक से अधिक अर्थात् दो तीन योग युगपत् नहीं हो सकते ।
स्वाभाविक ऊर्ध्वगमन स्वभाव के कारण शुद्ध जीव मध्य लोक से लोकाग्र स्थित तनुवातवलय तक जाता है, किन्तु शरीर नाम कर्मोदय न होने से योग अर्थात् आत्मप्रदेश परिस्पन्द नहीं होता।
योगरहित प्रयोगी जेसि रण संति जोगा सुहासुहा पुण्णपावसंजरगया । ते होंति अजोगिजिरणा अगोवमाणतबलकलिया ॥२४३॥"
१. "श्रीपपादिक वैक्रियिकम् ॥४६॥ लब्धिप्रत्ययं च ॥४७॥" [तत्त्वार्थसूत्र अध्याय ] । २. धवल पु. १ पृ. २७६ । ३. धवल पु. ५ पृ. ७७, धवल १०/४३७। ४. यली गाथा प्रा. प. सं. पृ. ५७८ गा. १४ है व पृ. २२ गा. १०० है किन्तु 'ग्रजोगि' के स्थान पर 'अजोह' और 'बल' के स्थान पर गुण है तथा धवल पु. १ पृ. २८० पर भी है किन्तु 'प्रजोगि' के स्थान पर 'प्रजोई है ।