Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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३४६/गो, मा. जीवकाण्ड
गाथा २७४-२७५
गाथार्थ--जो उत्तम गुण और उत्तम भोगों में स्वामीपने का अनुभव करता है, जो लोक में उत्तम गुणयुक्त कार्य करता है और जो उत्तम है, वह पुरुष है ।।२७३।।
विशेषार्थ-जो उत्कृष्ट गुणों में और उत्कृष्ट भोगों में शयन करता है वह पुरुष है। अथवा जिस कर्म के उदय से जीव सोते हुए पुरुष के समान गुणों से अनबगत होता है और भोगों को प्राप्त नहीं करता वह पुरुष है। जिसके स्त्री सम्बन्धी अभिलाषा पाई जाती है, वह पुरुष है। जो श्रेष्ठ कर्म करता है वह पुरुष है।'
शङ्का-जिसके स्त्रीविषयक अभिलाषा पाई जाती है, वह उत्तम कर्म कैसे कर सकता है ?
समाधान-ही, क्योंकि उत्तमक को कसी रूप सामध्य से युक्त जीव के स्त्रीविषयक अभिलाषा पाई जाती है, अतः वह उत्तम कर्म को करता है, ऐसा कथन उपचार से किया है ।
छादयदि सयं दोसे रणयदो छादवि परं वि दोसेण ।
छादणसीला जह्मा तह्मा सा वणिया इत्थी ॥२७४॥' गाथार्य जो अपने को दोषों से आच्छादित करती है और दूसरों को भी दोषों से आच्छादित करती है। आच्छादनशील होने के कारण वह स्त्री कही गई है ।।२७४।।
विशेषार्थ - जो दोषों से स्वयं अपने को भी और दूसरों को भो आच्छादित करती है वह स्त्री है। स्त्रीरूप जो वेद है वह स्त्रीदेद है । अथवा जो पुरुष की आकांक्षा करती है, वह स्त्री है, इसका अर्थ पुरुष की चाह करने वाली होती है। जो अपने को स्त्रीरूप अनुभव करता है वह स्त्रीवेद है। स्त्रीरूप वेद को स्त्रीवेद कहते हैं । जो कोमल वचन, कटाक्ष रूप अवलोकन, अनुकूल प्रवर्तन आदि द्वारा पुरुष को अपने वश में करके पापक्रियानों से दूषित करती है, वह स्त्री है। यद्यपि तीर्थकर की माता आदि कुछ स्त्रियाँ ऐसी भी हैं जिनमें यह लक्षण घटित नहीं होता तथापि प्रचुरता की अपेक्षा यह लक्षण कहा गया है।
णेवित्थी रणेष पुमं राउंसो उहलिङ्गविदिरित्तो ।
इट्ठावग्गिसमारणगवेदरणगरुप्रो कलुसचित्तो ॥२७॥ गाथार्थ-जो न स्त्री है और न पुरुष है, किन्तु स्त्री और पुरुष सम्बन्धी दोनों प्रकार के लिंगों से रहित है, अावा की अग्नि के समान तीव्र वेदना से युक्त है और सर्वदा स्त्री व पुरुष विषयक मैथुन की अभिलाषा से उत्पन्न हुई बेदना से जिसका चित्त कलुषित है, उसे नपुंसक कहते हैं ।।२७५।।
विशेषार्थ-जो न स्त्री है और न पुरुष है, बह नपुंसक है। जिसके स्त्री और पुरुषविषयक
१. धवल पु. १ पृ. ३४१ । २. घपल पु. १ पृ. २४१ । ३. यह गाथा धवल पु. १ पृ. ३४१ व पुस्तक ६ पृ. ४६ तथा प्रा.प.सं. पृ. २३ पर भी है। ४. धवल पु. १.३४०। ५. यह गाथा धवल पु. १, ३४२ व पु. ६ पृ. ४७ तथा प्रा.पं.सं. गाथा १०७ पृ. २३ पर भी है ।