Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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याथा २१६
योगमार्गणा/२६१
शङ्खा -जीव की गमनरूप क्रिया भी तो योग है ।
समाधान-जीव के गमन को योग नहीं कहा जा सकता, क्योंकि अघातिया कमों के क्षय से ऊर्ध्वगमन करने वाले प्रयोगकेवली के सयोगत्व का प्रसंग प्रा जायेगा।'
मन से उत्पन्न हुए परिस्पन्द-लक्षण वीर्य के द्वारा जो योग होता है वह मनोयोग है। वचन से उत्पन्न हुए प्रात्मप्रदेश-परिस्पन्द-लक्षण बीर्य के द्वारा जो योग होता है वह वचनयोग है। काय से उत्पन्न हुए आत्म-प्रदेश-परिस्पन्द-लक्षण वीर्य के द्वारा जो योग होता है, वह काययोग है। मनोवर्गणा से निष्पन्न हुए द्रव्यमन के अवलम्बन से जो जीव का संकोच-विकोच होता है, वह मनोयोग है, भाषावना सम्बन्धी पुद्गलस्कन्धों के अवलम्बन से जो जीवप्रदेशों का संकोच-विकोच होता है, वह वचनयोग है । जो चतुर्विध शरीरों के अवलम्ब से जीव-प्रदेशों का संकोच-विकोच होता है, वह काययोग है।
शा-जो जीवप्रदेश अस्थित हैं, उनके कर्मबन्ध भले ही हो, क्योंकि अस्थित (परिस्पन्द, चल) रूप प्रात्मप्रदेश योगसहित हैं। किन्तु जो जीवप्रदेश स्थित (अचल, परिस्पन्द रहित) हैं, उनके कर्मबन्ध का होना सम्भव नहीं है, क्योंकि वे योग से रहित हैं।
प्रतिशका-यह किस प्रमाण से जाना जाता है ?
प्रतिशखा का उत्तर-जीबप्रदेशों का परिस्पन्द न होने से ही जाना जाता है कि वे योग से रहित हैं। परिस्पन्द रहित जीवप्रदेशों में योग की सम्भावना नहीं है, क्योंकि वैसा होने पर सिद्ध जीवों के भी सयोग होने की मापत्ति पाती है।४ ।
शङ्का का समाधान- मन, बचन और काय सम्बन्धी क्रिया की उत्पत्ति में जो जीव का उपयोग (प्रयोग) होता है, वह योग है और कर्मबन्ध का कारण है। परन्तु वह प्रयत्न थोड़े से जीवप्रदेशों में नहीं हो सकता, क्योंकि एक जीव में प्रवृत्त हुए उक्त योग की थोड़े से अश्यवों में प्रवृत्ति मानने में विरोध पाता है, अथवा एक जीव में उसके खण्ड-खण्ड रूप से प्रवृत्ति होने में विरोध प्राता है । इसलिए स्थित (अचल, अपरिस्पन्दात्मक) जीवप्रदेशों में कार्मबन्ध होता है। दूसरे योग से सम्पूर्ण जीवप्रदेशों में नियम से परिस्पन्द होता है. ऐसा नहीं है. क्योंकि योग से अनियम से उसके होती है। तथा एकान्ततः नियम नहीं है. ऐसी भी बात नहीं है, क्योंकि जीवप्रदेशों में जो परिस्पन्द उत्पन्न होता है, वह योग से ही उत्पन्न होता है, ऐसा नियम पाया जाता है । इस कारण स्थित (अचल) जीवप्रदेशों में भी योग के होने से कर्मबन्ध को स्वीकार करना चाहिए।
शा-योग कौनसा भाव है ?
समाधान–'योग' यह अनादि पारिणामिक भाव है। इसका कारण यह है कि योग न तो औपशमिक भाव है, क्योंकि मोहनीय कर्म का उपशम नहीं होने पर भी योग पाया जाता है । न वह
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१. “न जीवगमणं जोगो, अजोगिस्स प्रघादिकम्मखएण वुठं गच्छंतरस ति सजगताप मंगादो ।" [धवल, पु. १० पृ. ४३७] । २. धवल पु. १ पृ. ३०८ । ३. धवल पु. ७ पृ. ७६ ४. धवल पु. १२ पृ. ३६६ । ५. प्रवल .१२ पृ. ३६७ ।