Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा २३४
योगमागंगा/३०५ नानाप्रकार के गुग से वह बिगुर्व है। जिसका प्रयोजन विगुर्व है वह वैगुर्षिक है। अथवा विविध नाना प्रकार की क्रिया व अनेक अणिमा आदि विकार का नाम विक्रिया है। जिसका प्रयोजन विक्रिया है वह वैक्रियिक है। उस वैक्रियिक शरीर के लिए, उस शरीर रूप परिणमने योग्य वैऋियिक पाहार वर्गणामों के ग्रहण से उत्पन्न हुई शक्ति से जीवप्रदेशों में परिस्पन्द का कारणभूत जो प्रयत्न होता है वह वैक्रियिक काययोग है। जब तक वक्रियिक शरीरपर्याप्ति पूर्ण नहीं होती तब तक कार्मण और वैक्रियिक वर्गणाओं के द्वारा उत्पन्न हुए वीर्य से जीवप्रदेशों में परिस्पन्द के लिए जो प्रयत्न होता है वह वैक्रियिक मिश्र काययोग है। अन्तमुहर्त प्रमाण अपर्याप्त काल में मात्र वक्रियिक वर्गणाओं के निमित्त से प्रात्मप्रदेशों में परिस्पन्द नहीं होता, किन्तु कार्मणशरीर के सम्बन्ध से युक्त होकर ही वैक्रियिक शारी सम्बन्धी परतों के निमित्त से योग होता है, इसलिए यह मिश्रयोग है ।
वक्रियिक काययोग की सम्भावना कहाँ-कहाँ बादर-तेऊवाऊपंचिदियपुण्णगा विगुवंति ।
पोरालियं सरीरं विगुन्धरणप्पं हये जेसि ।।२३४॥ गाथार्थ-बादर तेजकायिक-वायुकायिक और पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीव प्रौदारिफ शरीर द्वारा विक्रिया करते हैं इनमें से जिनके शरीर में यह योग्यता पाई जाती है वे विक्रिया करते हैं ।।२३४१५
विशेषार्थ-देव और नारकियों में वक्रियिक काययोग और वैक्रियिक मिश्र काययोग होता है ।
शङ्का-तिर्यंचों और मनुष्यों के इन दोनों योगों का उदय क्यों नहीं होता?
समाधान-नहीं, क्योंकि तिर्यंचगति और मनुष्यगति कर्मोदय के साथ वैक्रियिक शरीर नामकर्म के उदय का विरोध आता है अर्थात् तिर्यंच और मनुष्यगति में वक्रियिक शरीर नामकर्म का उदय नहीं होता, यह स्वभाव है। इसलिए तिर्यंच और मनुष्यों के वैक्रियिक काययोग और बैंक्रियिकमिश्र काययोग नहीं होता।
शङ्का-तिर्यंच और मनुष्य भी वैक्रियिक शरीरवाले सुने जाते हैं। वह कैसे संभव होगा?
समाधान-नहीं, क्योंकि औदारिक शरीर दो प्रकार का है, विक्रियात्मक और प्रतिक्रियात्मक । जो विक्रियात्मक औदारिक शरीर है वह मनुष्यों और तिर्यंचों के वैफियिक रूप से कहा गया है किन्तु उसमें नाना गुण और ऋद्धियों का अभाव होने के कारण उसको वैक्रियिक शरीर में ग्रहण नहीं किया गया।
चार शरीर जिनके होते हैं, वे चार शरीरवाले जीव हैं। शङ्खा --वे चार शरीर कौन-कौनसे हैं ?
१. श्रीमदभवचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती कृत टीका। २. यद्यपि यह गाथा २३३ नं. पर है किन्तु धवल ग्रंथ की दृष्टि से इसको नं. २३४ दिया है। ३. "वेब्वियकायजोगो वेउब्विय मिस्सकाय जोगो देवणेरइयाणं ।।५८॥" [घवल पु. १ पृ. २९६] ।