Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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२८० गो. मा. जीव काण्ड
गाघा २०४
जलकायिक जीव विशेष प्राधिक हैं, उनसे वायुकायिक जीव विशेष अधिक हैं। विशेष अधिक के लिए प्रतिभाग असंख्यात लोक है ।।२०४।।
विशेषार्थ- 'सूत्र अविरुद्ध प्राचार्यपरम्परा से आये हुए उपदेश के अनुसार तेजस्कायिक जीवराशि की संख्या उत्पन्न करने की विधि इस प्रकार है—एक धन लोक को शलाका रूप से स्थापित करके और दूसरे घनलोक को विरलित करके उस विरलित राशि के प्रत्येक एक के प्रति घनलोक को देय रूप से देकर और परस्पर वर्गितसंगित करके शलाकाराशि में से एक कम कर देना चाहिए। तब एक अन्योन्य गुणकार शलाका प्राप्त होती है । परस्पर वर्गित संगित करने से उत्पन्न हुई उस राशि की वर्गशलाकाएँ पल्योपम के असंख्यातवें भाग मात्र होती हैं। उस उत्पन्न राशि की अर्धचंद्रद शलाकाएँ असंख्यात लोक प्रमाण होती हैं और वह उत्पन्न राशि भी असंख्यात लोकप्रमाण होती है । पुन: इस उत्पन्न हुई महाराशि को विरलित करके और उस विरलित राशि के प्रत्येक एक के प्रति उसी उत्पन्न हुई महाराशि को देय रूप से देकर परस्पर वागत सगित करके शलाका राशि में से दूसरी बार एक कम करना चाहिए । तब अन्योन्य मुणकार शलाकाएँ दो होती हैं और वर्गशलाकाएँ, अर्धच्छेदशलाकाएँ तथा उत्पन्न राशि असंख्यात लोकप्रमाण होती है । इसी प्रकार लोकप्रमाण शलाकाराशि समाप्त होने तक इसी क्रम से ले जाना चाहिए। तब अन्योन्य गुणकार शलाकाओं का प्रमाण लोक होगा और शेष तीन राशियाँ अर्थात् उस समय उत्पन्न हुई महाराशि और उसकी यर्गशलाकाएं तथा अर्धच्छेदशलाकाएँ असंख्यात लोकप्रमाण होंगी। पुनः इस प्रकार उत्पन्न हुई महाराशि को विरलित करके और इसी राशि को शलाकारूप से स्थापित करके विरलित राशि के प्रत्येक एक के प्रति उसी उत्पन्न हुई महाराशि के प्रमाण को देय रूप से देकर गितसंगित करके शलाका राशि में से एक कम कर देना चाहिए । तब अन्योन्य गुणकार शलाकाएँ एक अधिक लोकप्रमाण होती हैं । शेष तीनों राशियाँ अर्थात् उत्पन्न हुई महाराशि, वर्गशलाकाएं और अर्धच्छेदशलाकाएँ असंख्यात लोकप्रमाण होती हैं। पुनः उत्पन्न हुई महाराशि को विरलित करके और उस विरलित राशि के प्रत्येक एक के प्रति उसी उत्पन्न हुई महाराशि को देकर गितसंगित करके शलाकाराशि में से दूसरी बार एक घटा देना चाहिए। उस समय अन्योन्य गुरणकार अलाकाएं दो अधिक लोकप्रमाण होती हैं। शेष तीनों राशियाँ लोकप्रमाण होती हैं। इस प्रकार इसी क्रम से दो कम उत्कृष्ट संख्यातमात्र लोकप्रमाण अन्योन्य गुणकार शलाकाओं के दो अधिक ल अन्योन्य गुणकार शलाकामों में प्रविष्ट होने पर चारों राशियाँ भी असंख्यात लोकप्रमाण इसी प्रकार दूसरी बार स्थापित शलाकाराशि समाप्त होने तक इसी क्रम से ले जाना चाहिए। तब भो चारों राशियाँ असंख्यात लोकप्रमाण होती हैं। पुनः अन्त में उत्पन्न हुई महाराणि को शलाकारूप से स्थापित करके और दूसरी उसी उत्पन्न हई महाराशि के प्रमाण को बिरलित करके और उत्पन्न हुई उसी महाराशि के प्रमाण को बिरलित राशि के प्रत्येक एक के प्रति देय रूप से देकर परस्पर वगित संगित करके शलाकाराशि में से एक कम कर देना चाहिए। तब भी चारों राशियाँ असंख्यात लोकप्रमाण होती हैं। इसी प्रकार तीसरी बार स्थापित शलाकाराशि समाप्त होने तक इसी क्रम से ले जाना चाहिए। तब भी चारों राशियाँ असंख्यात लोक प्रमाण हैं। पुनः अन्त में इस उत्पन्न हुई महा राशि को तीन प्रति राशिरूप करके उनमें से एक राशि को शलाकारूप से स्थापित करके, दूसरी एक राशि को विरलित करके और उस विरलित रात्रि के प्रत्येक एक के प्रति एक राशि के
१. घ. पु. ३ पृ. ३३४-३३६ ब विनोकसार पृ. ७८ ।