Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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२७८/गो. सा. जीवनागर
गाथा २०१-२०२
विशेषार्थ-पृथिवोकायिक, अपक्रायिक, अग्निकायिक और वायुकायिक इन चार स्थावरों के शरीर, केवलियों के शरीर, माहारक शरीर, देवों का शरीर और नारकियों का शरीर इन आर जीवों के शरीरों के आथित बादर निगोद जीव नहीं रहते, अतः ये पाठ प्रकार के शरीर अप्रतिष्ठित हैं। शेष वनस्पतिकायिकों के शरीर, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीवों के शरीर व मनुष्यों के शरीर, ये सब शरीर मप्रतिष्ठित हैं, क्योंकि इनके आश्रय से बादरनिगोद जीव रहते हैं।
स्थावरका यिक और सकायिक जीवों का ग्राकार मसुरंबुखिदुसई कलाबधयसािहो हवे देहो ।
पुढवी आदि चउण्हं तरुतसकाया अणेययिहा ।।२०१॥ गाथार्थ मसूर, जलबिंदु, सुइयों का समूह और ध्वजा इनके मग पृथिवी आदि चार स्थावरों का शरीर होता है। बनस्पतिकायिक और असकाय जीवों का शरीर अनेक प्रकार का होता हैं ।।२०।।
विशेषार्थ-पृथिवीकायिक जीव के शरीर का आकार (संस्थान) मसूर अन्न के समान वृत्ताकार है। अप्कायिक जीव के शरीर का संस्थान (आकार) कुशाग्र पर प्रोस विन्दु के समान वर्तुलाकार है। तेज (अग्नि) कायिक जीव के शरीर का संस्थान (याकार) सुइयों के समान अवं बहुमुख रूप है। वायुकायिक जीव के शरीर का संस्थान (आकार) ध्वजा (पताया! ) के समान प्रायतचतुरस्त्र है। इन चारों स्थावर जीवों के शरीर की अवगाहना घनांगुल के असंख्यात भाग प्रमाण है जो दृष्टिगोचर नहीं है। जो इन्द्रियगोचर होता है, वह पृथिवी आदि बहुत जीवों के शरीरों का समूह है । 'तरूणां' बनस्पतिकायिक अर्थात प्रत्येक वनस्पति व वादर साधारण वनस्पति-सूक्ष्म साधारण बनस्पति इनके शरीरों का संस्थान (आकार) और ब्रस अर्थात् द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रियपंचेन्द्रिय जीवों के शरीरों का संस्थान अनेक प्रकार का है, अर्थात् अनियत संस्थान (आकार) है । इन .. शरीरों को अवगाहना यथासम्भव धनांगुल के असंख्यातवें भाग, संख्यातवें भाग व संध्यात घनांगुल । प्रमाण है।
संप्तारी जीव काय के द्वारा ही कर्म भार का वहन करता है, इसका उदाहरण
जह भारवहो परिसो वहइ भरं गेहिऊण कावलियं ।
एमेव वहद जीवो कम्मभरं कायकावलियं ।।२०२।।* गाथार्थ -जिस प्रकार भार को ढोनेवाला पुरुष कावड़ को लेकर भार को ढोता है, उसी प्रकार यह जीव शरीररूपी काबड़ को लेकर कर्मरूपी भार को होता है 11२०२।।
१. सिद्धान्तचक्रावर्ती श्रीमदभयवन्द्र कृत टोका पृ. ४४६ । २. "मसुरियासम्म बिदुसूइकलावापडायसंठामा । कामाणं संठाणं हरिदत्तमा गसंठागा ॥१२/४८।।''[ मूलाचार पर्याप्त्यधिकार पृ. २०६] । ३. मूलाचार गाथा १२/४८ की टीका तथा सिद्धान्तचक्रवर्ती श्रीमदभय चन्द्र कृत टीका अनुसार । ४. धबल पु. १ पृ. १३६ पर गा. ८७ है किन्तु 'गेहिऊण' के स्थान पर 'मेण्हिऊरण' तथा 'कावलिय' के स्थान पर 'कायोलि' पाठ है तथा प्रा.पं.सं. पृ.१६ पर गा. ७६ है।