Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा १६२
२६८ /गो. मा. जीवकाण्ड
एक निगोद जीव का अनुग्रहण अर्थात् पर्याप्तियों को उत्पन्न करने के लिए जो पुद्गलपरमाणों का ग्रहण है या निष्पन्न हुए शरीर के जो परमाणु पुद्गलों का ग्रहण है, वह उस शरीर में उस काल में रहनेवाले और नहीं रहने को बहुत पामार जनों लोता है। कोगि उस पाहार से उत्पन्न हुई शक्ति यहाँ के सब जीवों में युगपत् उपलब्ध होती है । अथवा उन परमाणुओं से निष्पन्न हुए शरीर के अवयवों का फल सब जीवों में उपलब्ध होता है।
शा-.यदि एक जीव में योग से आये हुए परमाणु-पुद्गल उस शरीर में रहने वाले अन्य जीवों के ही होते हैं तो योगवाले उस जीव का वह अनुग्रहण नहीं हो सकता, क्योंकि उसका सम्बन्ध अन्य जीवों के साथ पाया जाता है।
समाधान - इस एक योगवाले जीव का भी वह अनुग्नहगा होता है, क्योंकि उसका फल इस जीव में भी उपलब्ध होता है।'
शंका-एक जीव के द्वारा दिये गये पुद्गलों का फल अन्य जीव कैसे भोगते हैं ?
समाधान—यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि एक के द्वारा भी दिये गये धन-धान्यादिक को अविभक्त धनवाले भाई लड़की पिता पुत्र और नाती तक के जीव भोगते हुए देखे जाते हैं।
शा-उसी शरीर में निवास करनेवाले जीवों के योग से आये हुए परमाणुपुद्गल एक विवक्षित जीव के होते हैं या नहीं होते ?
समाधान—बहुत जीवों का जो अनुग्रहण है वह मिलकर एक का अर्थात् विवक्षित निगोद जीव का भी होता है, क्योंकि एक शरीर में निवास करने वाले अनन्त जीवों के योग से आये हुए परमाणु पुद्गल-कलाप से उत्पन्न हुई शक्ति इस जीव में पाई जाती है ।
शङ्का–यदि ऐसा है तो उन बहुत जीवों का वह अनुग्रहण अर्थात् उपकार नहीं होता है, क्योंकि उसका फल अन्यत्र ही एक जीव में उपलब्ध होता है ?
समाधान- 'एक' शब्द अन्तभित वीप्सारूप अर्थ को लिये हुए है, इसलिये यह फलित हुआ कि एक-एक जीव का भी वह अनुग्रहण है, क्योंकि उन पुद्गलों से अन्य जीवों में शक्ति के उत्पन्न होने के काल में ही अपने में भी उसकी उत्पत्ति होती है।
समगं बक्कंतागं समग तेसि शरीरणिप्पत्ती ।
समगं च अणुग्गहणं समग उस्सासणिस्सासो ॥१२४॥ –एक शरीर में उत्पन्न होने वालों के उन के शरीर की निष्पत्ति एक साथ होती है, एक साथ अनुग्रहण होता है और एक साथ उच्छ्वास-नि:मबास होता है ।
एक शरीर में जो पहले उत्पन्न हुए अनन्त जीव हैं और जो बाद में उत्पन्न हुए अनन्त जीव हैं, वे सब एक साथ उत्पन्न हुए कहे जाते हैं ।
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१. धवल पु. १४ पृ. २२८ ।
२. धबल पु. १४ पृ. २२६ ।
३. धवल पु. १४ पृ. २२६ ।