Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
View full book text
________________
गाथा १६६
कारण/२७५
श्रम जीवों का स्वरूप
बिहि तिहि चदुहि पंचह सहिया जे इंदिएहि लो । तसकाया जीवा या वीरोबसेर ।। १६८ ।। '
ते
गाथार्थ -- लोक में जो दो इन्द्रियों से तीन इन्द्रियों से चार इन्द्रियों से और पाँच इन्द्रियों से सहित जीव हैं श्री वीर भगवान के उपदेश अनुसार उनको त्रसकाय जानना चाहिए ।। १६८ ।। २
विशेषार्थ - यस जीव स्पर्शन व रसना इन दो इन्द्रियों से सहित हैं, स्पर्शन रसना और घ्राण इन तीन इन्द्रियों से सहित हैं अथवा स्पर्शन, रसना, घ्राण और चक्षु इन चार इन्द्रियों से सहित हैं तथा स्पर्शन, रसना, घाण, चक्षु और श्रोत्र इन पाँच इन्द्रियों से सहित जीव हैं ।
इनमें से जो स्पर्शन व रसना इन दो इन्द्रियों से सहित हैं वे द्वीन्द्रिय जीव हैं, जैसे शंख, कौड़ी, सीप, जोंक व लटयादि । जो स्पर्शन, रसना व प्रारण इन तीन इन्द्रियों से सहित हैं वे त्रीन्द्रिय जीव हैं जैसे चींटी, बिच्छू, पटार, जू' व खटमल आदि । जो स्पर्शन, रसना, घाण व चक्षु इन चार इन्द्रियों सहित हैं वे चतुरिन्द्रिय जीव हैं जैसे मक्खी, पतंग, भौरा, मधुमक्खी, मकड़ी यादि चतुरिन्द्रिय जीव हैं। जो स्पर्शन, रसना, धारणा, चक्षु और श्रोत्र इन पाँचों इन्द्रियों से सहित हैं वे पंचेन्द्रिय जीव हैं जैसे पक्षी, हाथी, घोड़ा, सर्प, मनुष्य, देव, नारकी श्रादि । पंचेन्द्रिय जीवों का जन्म अनेक प्रकार का होता है । अण्डज अर्थात् अण्डे से उत्पन्न होने वाले जैसे पक्षी आदि । जरायुज जिनके ऊपर मांस श्रादि का जाल लिपटा रहता है ऐसे जेर सहित जन्म लेने वाले मनुष्य, गाय, भैंस आदि । जो पंचेन्द्रिय तिर्यत्र गर्भ में जरायु आदि प्रावरण से रहित होकर रहते हैं वे पोतायिक हैं । चमड़े के पात्र में रखे हुए वृत आदि में चमड़े के संयोग से उत्पन्न होने वाले रसायिक हैं। पसीने से उत्पन्न होने वाले जीव संस्वेदिम कहे जाते हैं । सर्व ओर से पुद्गलों को ग्रहण करके शरीर बनाने वाले संमूर्च्छन जन्मवाले हैं। पृथिवी, काठ, पत्थर आदि को भेदकर उत्पन्न होने वाले जीव उद्भेदिम है जैसे रत्न या पत्थर आदि को चीरने से निकलनेवाले मेंढक देव और नारकियों के उपपादस्थानों में उत्पन्न होने वाले देव और नारकी जीव उपपादिम है ।
जिनके जीवविपाकी त्रस नाम कर्म का उदय है वे सजीव हैं ।
शङ्का - जो भयभीत होकर गति करें, वे बस हैं। ऐसा क्यों नहीं कहा गया ?
समाधान- यह व्युत्पत्त्यर्थ ठीक नहीं है, क्योंकि गर्भस्थ ग्रण्डस्थ, मूच्छित, सुषुप्त आदि में बाह्य भय आदि के निमित्त मिलने पर भी हलन चलन नहीं होता; प्रत: इनमें सत्व का प्रसंग आ जाएगा | आगम में भी हीन्द्रिय से लेकर प्रयोगकेवली जीवों को बस कहा गया है।
शङ्का - सजीव क्या सूक्ष्म होते हैं अथवा बादर ?
समाधान- त्रस जीव बादर ही होते हैं, सूक्ष्म नहीं होते ।
१. धवल पु. १ पृ. २७४ प्रा.पं.सं. पू. १८ . ८६ । २. "ढोखियादयस्त्राः ||१४|| [ तत्त्वार्थ सूत्र श्र. २ ] | ३. तत्त्वावृत्ति २ / १४ । ४. राजवार्तिक २ / १२ / १-२ । ५. "तसकाइया नीइ दिय-प्पहूडि जाव जोगिकेवलि ि।। ४४ । चत्र पु. १ पृ. २७५ ॥