Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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माया १६४-१९६
कायमार्गगणा/२७३
समाधान · . वर्तमानकाल सबसे स्तोक है। अभव्य जीवों का प्रमाण उससे अनन्तगुणा है। जघन्य युक्तानन्त यहाँ पर गुणाकार रूप से अभीष्ट है। अभव्य राशि से सिद्धकाल अनन्तगुणा है। छहमहीने के अष्टम भाग में एक मिला देने पर जो समयसंख्या प्राप्त हो उससे भक्त अतीतकाल का अनन्तबांभाग यहाँ पर मुरणाकार है। सिद्धकाल से सिद्ध संख्यातगुण हैं। यहाँ पर दस प्रथक्त्व गुणाकार है। सिद्ध जीवों से प्रसिद्ध काल असंख्यातगुणा है। यहाँ पर संख्यात पावलिकाएँ गुणाकार है। प्रसिद्ध काल से अतीत काल विशेष अधिक है। सिद्धकाल का जितना प्रमाण है उतना विशेष अधिक है ।' प्रतीत काल से भव्य मिथ्याष्टि अनन्तगुरणे हैं । भव्य मिथ्यादृष्टि का अनन्तवाभाग गुरगाकार है। भव्य मिथ्याष्टियों से भव्य जीव विशेष अधिक हैं। सासादन गुणस्थान से अयोगी केवली प्रस्थान तक जीवों का जितना प्रमाण है उतने विशेष अधिक हैं। भव्य जीवों से सामान्य भिल्याष्ट विशेष अधिक है। अमला राशि में
मोनादिरह गुरगस्थानवी जीवों के प्रमाण को कम कर देने पर जो राशि अवशिष्ट रहे, उतने विशेष अधिक हैं। सामान्य मिथ्याइष्टियों से संसारी जीव विशेष अधिक है। सासादन यादि तेरह गुणस्थानवी जीवों का जितना प्रमाण है उतने बिशेष प्रधिक हैं। संसारी जीवों से सम्पूर्ण जीव विशेष अधिक हैं। सिद्ध जीवों का जितना प्रमाण है उतने अधिक हैं। सम्पूर्ण जीवराशि से पुद्गल राशि अनन्तगृगो है। यहाँ पर सम्पूर्ण जीवरामि से अनन्तगुणा गुणाकार है। पुद्गल से अनागत काल अनन्तगुरणा है। यहाँ पर सर्व पुद्गल द्रव्य से अनन्तगुणा गुणाकार है।' अनागत काल से सम्पूर्ण काल विशेष अधिक है। वर्तमान और अतीत कालमात्र विशेष अधिक है। संपूर्ण काल से अलोकाकाश अनन्तगुणा है। सम्पूर्ण काल से अनन्तगणा गुणाकार है। अलोकाकाश से सम्पुर्ण प्राकाश विशेष अधिक है। लोकाकाण के प्रदेश प्रमाण विशेष अधिक है। इस प्रकार इस अल्पबहत्व से यह प्रतीत हो जाता है कि अतीतकाल से मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तगुणे हैं ।५. इसलिए सिद्ध हुआ कि सिद्धों से एक निगोद शरीर के जीव अनन्तगुरणे हैं। प्रतएव सभी अतीतकाल के द्वारा एक निगोदशरीर के जीव भी सिद्ध नहीं होते हैं। उन निगोदों में जो जीव स्थित हैं बे दो प्रकार के हैं- चतुर्गति और नित्यनिगोद। जो देव, नारकी, तिर्यंच और मनुष्यों में उत्पन्न होकर पुन: निगोद में प्रवेश करके रहते हैं वे चतुर्गति निगोद जीव हैं। प्रतीत काल में सपने को प्राप्त हुए जीव यदि बहुत अधिक होते हैं तो अतीतकाल से असंख्यातगुणे ही होते हैं। अन्तमुहूतकाल के द्वारा यदि प्रतर के असंख्यातवेंभाग प्रमाग जीव त्रसों में उत्पन्न होते है तो तीतकाल में कितने प्राप्त होंगे? इस प्रकार फल राशि से गुणित इस छाराशि में प्रमाणराशि का भाग देने पर अतीतकाल से असंख्यातगुणी अस राशि होती है। इससे जाना जाता है कि अतीतकाल में उस भाव को नहीं प्राप्त हुए जीवों का अस्तित्व है और जीवों के सिद्ध होने पर भी संसारी जीवों का विन्छेद नहीं होता।
__ अतीतकाल में उस भाव को नहीं प्राप्त हुए जीवों का अर्थात् नित्यनिगोद जीवों का अस्तित्व है और संसारी जीवों का विच्छेद नहीं होता, यह एक गाथा द्वारा कहा जाता है
१. घवल पु. ३ पृ. ३० । २. सर्व जीवराशि का उत्तरोत्तर वर्ग करने पर अनन्तलोक प्रमाण वर्गस्थान प्राग जाकर सब पुद्गल द्रव्य प्राप्त होता है। धवल पु. १३ पृ. २६२-२६३ । ३. सब पद्गलद्रव्य का उत्तरोत्तर वर्ग करने पर अनन्तलोक मात्र वगंस्थान प्रागे जाकर सर्व काल प्राप्त होता है 1 घवल पृ. १३ पृ. २६३। ४. सन कालों का उत्तरोत्तर वर्ग करने पर अनन्त लोकमात्र वर्गस्थान आगे जाकर सब प्रकाश श्रेणी प्राप्त होती है। ५. बनल पृ. ३ पृ. ३०-३१। ६.धवल पु. १४. २३६ ।